पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१७५

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क्या बयाँ करके मिरा, रोयेंगे यार
मगर आशुफ्तः बयानी मेरी

हूँ ज़िख़ुद रफ़्तः-ए-बैदा-ए-खयाल
भूल जाना है, निशानी मेरी

मुतकाबिल है, मुक़ाबिल मेरा
रुक गया, देख रवानी मेरी

क़द्र-ए-सँग-ए-सर-ए-रह रखता हूँ
सख्त अरजाँ है, गिरानी मेरी

गर्द बाद-ए-रह-ए-बेताबी हूँ
सरसर-ए-शौक है, बानी मेरी

दहन उसका, जो न मालूम हुया
खुल गई हेच मदानी मेरी

कर दिया जो'फ़ ने 'आजिज, गालिब
नँग-ए-पीरी है, जवानी मेरी

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<poem> नक़्श-ए-नाज़-ए-बुत-ए-तन्नाज, ब ग्रासोश-ए-रकीब पा-ए-ताऊस पै-ए-ख़ामः-ए-मानी माँगे <poem>