पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१७९

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ग़ाफ़िल, इन मह तल्'अतों के वास्ते चाहने वाला भी अच्छा चाहिये चाहते हैं खूबरुओं को असद आप की सूरत तो देखा चाहिये १९१ हर कदम दूरि-ए-मंजिल है नुमायाँ मुझसे मेरी रफ़्तार से भागे है, बयाबाँ मुझसे दर्स-ए-'अन्वान-ए-तमाशा, ब तगाफुल ख़ुश्तर है निगह रिश्तः-ए-शीराजः-ए-मिशगाँ मुझसे वहशत-ए-आतश-ए-दिल से, शब-ए-तन्हाई में सूरत-ए-दूद, रहा सायः गुरेजाँ मुझसे ग़म-ए- 'श्रुश्शान न हो, सादगी आमोज़-ए-बुताँ किस कदर ख़ानः-ए-आईनः है वीराँ मुझसे असर-ए-श्राबलः से, जादः-ए-सहरा-ए-जुनूं सूरत-ए-रिश्तः-ए-गौहर है चरागाँ मुझसे बेख़ुदी बिस्तर-ए-तम्हीद-ए-फ़राग़त हूजो पुर है साये की तरह, मेरा शबिस्ताँ मुझसे