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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१८३

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तपिश से मेरी, वक़्फ़-ए-कशमकश, हर तार-ए-बिस्तर है
मिरा सर रँज-ए-बाली है, मिरा तन बार-ए-बिस्तर है

सरश्क-ए-सर बसहरा दादः, नूरुल 'अन-ए-दामन है
दिल-ए-बेदस्त-ओ-पा उफ्तादः, बर्ख़ुर्दार-ए-बिस्तर है

ख़ुशा इक़बाल-ए-रंजूरी,'अयादत को तुम आये हो
फ़रोग़-ए-शम्-'ए-बाली, ताले'-ए-बेदार-ए-बिस्तर है

ब तूफ़ाँ गाह-ए-जोश-ए-इज़्तिराब-ए-शाम-ए-तन्हाई
शु'आ-ए-आफ़्ताब-ए-सुब्ह-ए-महशर तार-ए-बिस्तर है

अभी आती है बू, बालिश से, उसकी ज़ुल्फ़-ए-मिश्कीं की
हमारी दीद को, ख़्वाब-ए-ज़ुलैखा, 'आर-ए-बिस्तर है

कहूँ क्या, दिल की क्या हालत है, हिज्र-ए-यार में, ग़ालिब
कि बेताबी से, हर इक तार-ए-बिस्तर खार-ए-बिस्तर है

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ख़तर है, रिश्तः-ए-उल्फ़त रग-ए-गर्दन न हो जावे
ग़ुरूर-ए-दोस्ती आफ़त है, तू दुश्मन न हो जावे