यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
समझ इस फ़स्ल में कोताहि-ए-नश्व-ओ-नुमा, ग़ालिब
अगर गुल, सर्व के कामत प, पैराहन न हो जावे
१९७
फ़रियाद की कोई लै नहीं है
नालः पाबन्द-ए-नै नहीं है
क्यों बोते हैं बाग़बान तूँबे
गर बाग़ गदा-ए-मै नहीं है
हर चन्द हर एक शै में तू है
पर तुझसी तो कोई शै नहीं है
हाँ, खाइयो मत फ़रेब-ए-हस्ती
हर चन्द कहें, कि है, नहीं है
शादी से गुज़र, कि ग़म न होवे
उर्दी जो न हो, तो दै नहीं है
क्यों रद्द-ए-क़दह करे है, ज़ाहिद
मै है, यह मगस की क़ै नहीं है
हस्ती है, न कुछ 'अदम है, ग़ालिब
आख़िर तू क्या है, अय, नहीं है