पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१८५

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१९८ न पूछ नुस्खः -ए-मरहम, जराहत-ए-दिल का कि उस में रेजः-ए-अल्मास जुड़व-ए-आजम है बहुत दिनों में तग़ाफ़ुल ने तेरे पैदा की वह इक निगह, कि बज़ाहिर निगाह से कम है १९९ हम रश्क को अपने भी, गवारा नहीं करते मरते हैं, वले उन की तमन्ना नहीं करते दर पर्दः उन्हें गैर से, है रब्त-ए-निहानी जाहिर का यह पर्दा है, कि पर्दा नहीं करते यह बा अिस-ए-नौमीदि-ए-अर्बाब-ए-हवस है ग़ालिब को बुरा कहते हो, अच्छा नहीं करते २०० करे है बादः, तिरे लब से कस्ब-ए-रंग-ए-फ़रोग़ खत-ए-पियालः सरासर निगाह-ए-गुलची है