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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१८५

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न पूछ नुस्खः -ए-मरहम, जराहत-ए-दिल का
कि उस में रेज़:-ए-अल्मास जुज़्व-ए-आ'ज़म है

बहुत दिनों में तग़ाफ़ुल ने तेरे पैदा की
वह इक निगह, कि बज़ाहिर निगाह से कम है

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हम रश्क को अपने भी, गवारा नहीं करते
मरते हैं, वले उन की तमन्ना नहीं करते

दर पर्दः उन्हें ग़ैर से, है रब्त-ए-निहानी
ज़ाहिर का यह पर्दा है, कि पर्दा नहीं करते

यह बा'अिस-ए-नौमीदि-ए-अर्बाब-ए-हवस है
ग़ालिब को बुरा कहते हो, अच्छा नहीं करते

२००



करे है बादः, तिरे लब से कस्ब-ए-रंग-ए-फ़रोग़
खत-ए-पियालः सरासर निगाह-ए-गुलचीं है