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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१९३

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याँ तलक मेरी गिरफ्तारी से वह ख़ुश है, कि मैं
ज़ुल्फ़ गर बन जाऊँ, तो शाने में उल्झा दे मुझे

२०९



बाजीचः-ए-अत्फ़ाल है दुनिया, मिरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा, मिरे आगे

इक खेल है औरँग-ए-सुलैमाँ, मिरे नज़दीक
इक बात है ए'जाज़-ए-मसीहा, मिरे आगे

जुज़ नाम, नहीं सूरत-ए-'आलम मुझे मंज़ूर
जुज़ वहम, नहीं हस्ति-ए-अशिया मिरे आगे

होता है निहाँ गर्द में सहरा, मिरे होते
घिसता है जबीं ख़ाक प दरिया, मिरे आगे

मत पूछ, कि क्या हाल है मेरा, तिरे पीछे
तू देख, कि क्या रँग है तेरा, मिरे आगे

सच कहते हो, ख़ुदबीन-ओ-ख़ुदआरा हूँ, न क्यों हूँ
बैठा है बुत-ए-आइनः सीमा मिरे आगे

फिर देखिये, अन्दाज़-ए-गुल अफ़शानि-ए-गुफ़्तार
रख दे कोई, पैमानः-ओ-सहबा मिरे आगे