पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१९४

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नफरत का गुमाँ गुजरे है, मैं रश्क से गुजरा
क्योंकर कहूँ, लो नाम न उनका मिरे आगे

ईमाँ मुझे रोके है, तो खेंचे है मुझे कुफ
का बः मिरे पीछे है, कलीसा मिरे आगे

'आशिक हूँ, प मा शून फरेबी है मिरा काम
मजनूं को बुरा कहती है लैला, मिरे आगे

ख़ुश होते हैं, पर वस्ल में यों मर नहीं जाते
आई शब-ए-हिज्राँ की तमन्ना, मिरे आगे

है मौजजन इक कुल्जुम-ए-खू, काश, यही हो
आता है, अभी देखिये, क्या क्या, मिरे आगे

गो हाथ को जुँबिश नहीं, आँखों में तो दम है
रहने दो अभी सागर-ओ-मीना मिरे आगे

हम पेशः-ओ-हम मश्रब-ओ-हम राज़ है मेरा
ग़ालिब को बुरा क्यों कहो, अच्छा, मिरे आगे

२१०

कहूँ जो हाल, तो कहते हो, मुद्दा कहिये
तुम्हीं कहो, कि जो तुम यों कहो, तो क्या कहिये