यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
सफ़ीनः जबकि कनारे पा लगा, ग़ालिब
ख़ुदा से क्या सितम-यो-जर-ए-नाख़ुदा कहिये
२११
रोने से और 'अिश्क़ में बेबाक हो गये
धोये गये हम ऐसे, कि बस पाक हो गये
सर्फ़-ए-बहा-ए-मै हुये, आलात-ए-मैकशी
थे यह ही दो हिसाब, सो यों पाक हो गये
रुस्वा-ए-दह्र गो हुये, आवारगी से तुम
बारे तबी‘अतों के तो चालाक हो गये
कहता है कौन नालः-ए-बुलबुल को, बे असर
पर्दे में गुल के लाख जिगर चाक हो गये
पूछे है क्या वुजूद-यो-‘अदम अह्ल-ए-शौक़ का
आप अपनी आग के ख़स-ओ-ख़ाशाक हो गये
करने गये थे उससे, तग़ाफ़ुल क़ा हम गिला
की एक ही निगाह, कि बस ख़ाक हो गये
इस रंग से उठाई कल उसने असद की लाश
दुश्मन भी जिसको देख के ग़मनाक हो गये