पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१९७

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२१२

नश्शःहा शादाब-ए-रंग-ओ-साजहा मस्त-ए-तरब
शीश:-ए-मैं सर्व-ए-सब्ज़-ए-जूइबार-ए-नरमः है

हमनशी मत कह, कि, बरहम कर न बज्मे त्रैश-ए-दोस्त
वाँ तो मेरे नाले को भी ए'तिबार-ए-नरमः है

२१३

अर्ज-ए-नाज-ए-शोख़ि-ए-दँदाँ, बराय खन्दः है
दावः-ए-जम प्रियत-ए-अबाब, जा-ए-ख़न्दः है

है 'अदम में, गुंचः मह्व-ए-'प्रिव्रत-ए-अंजाम-ए-गुल
यक जहाँ जानू तअम्मुल दर क़फ़ा-ए-ख़न्दः है

कुल्फ़त-ए-अफ़सुर्दगी को 'अश-ए-बेताबी हराम
वर्नः दँदाँ दरदिल अफ़शुर्दन बिना-ए-ख़न्दः है

सोजिश-ए-बातिन के हैं अबाब मुंकिर, वनः याँ
दिल मुहीत-ए-गिरियः-ओ-लब प्राश्ना-ए-ख़न्दः है