पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२०६

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राम आगोश-ए-बला में परवरिश देता है, 'आशिक को चराग़-ए-रोशन अपना, कुल्जुम-ए-सरसर का मरजाँ है २२८ खमोशियों में तमाशा अदा निकलती है निगाह, दिल से तिरे, सुर्मः सा निकलती है फ़िशार-ए-तँगि-ए-खल्बत से बनती है शबनम सबा जो गुंचे के पर्दे में जा निकलती है न पूछ सीनः-ए-'पाशिक से आब-ए-तेग़-ए-निगाह कि ज़ख़्म-ए-रौजन-ए-दर से हवा निकलती है २२९ जिस जा नसीम शानः कश-ए-जुल्फ़-ए-यार है नाफ़: दिमारा आहू-ए - दश्त-ए-ततार है किसका सुराग़-ए-जल्वः है हैरत को, अय ख़ुदा आईनः फर्श-ए-शश जिहत-ए-इन्तिजार है है ज़र्रः जरः तँगि-ए-जा से गुबार-ए-शौक़ गर दाम यह है, वुस अत-ए-सह्रा शिकार है