पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२०७

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दिल मुद्दत्रि-ओ-दीदः बना मुद्दा 'अलैह नजारे का मुक़द्दमः फिर रू ब कार है छिड़के है शबनम आईन:-ए-बर्ग-ए-गुल पर श्राब अय 'अन्दलीब, वक़्त-ए-विदा -ए-बहार है पच आ पड़ी है वादः-ए-दिलदार की मुझे वह आये या न आये ५ याँ इन्तिजार है बेपर्दः सू-ए-वादि-ए-मजनूं गुजर न कर हर ओर के निक़ाब में दिल बेकरार है अय 'अन्दलीब यक कफ़-ए-ख़स बहर-ए-आशियाँ तूफ़ान-ए-आमद आमद-ए-फ़रल-ए-बहार है दिल मत गँवा, ख़बर न सही, सैर ही सही अय बे दिमारा, आइनः तिम्साल दार है राफ़्लत कफ़ील-ए-'झुम्र-ओ-असद जामिन-ए-नशात अय मर्ग-ए-नागहाँ, तुझे क्या इन्तिजार है २३० आईनः क्यों न दूं, कि तमाशा कहें जिसे ऐसा कहाँ से लाऊँ, कि तुझ सा कहें जिसे