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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२०७

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दिल मुद्द'अ-ओ-दीदः बना मुद्द'आ 'अलैह
नज़्ज़ारे का मुक़द्दमः फिर रू ब कार है
छिड़के है शबनम आईन:-ए-बर्ग-ए-गुल पर आब
अय 'अन्दलीब, वक़्त-ए-विदा'-ए-बहार है
पच आ पड़ी है वा'दः-ए-दिलदार की मुझे
वह आये या न आये पर याँ इन्तिज़ार है
बेपर्दः सू-ए-वादि-ए-मजनूँ गुजर न कर
हर ज़र्रे निक़ाब में दिल बेक़रार है
अय 'अन्दलीब यक कफ़-ए-ख़स बहर-ए-आशियाँ
तूफ़ान-ए-आमद आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार है
दिल मत गँवा, ख़बर न सही, सैर ही सही
अय बे दिमाग़, आइनः तिम्साल दार है
ग़फ़्लत कफ़ील-ए-'अम्र-ओ-असद ज़ामिन-ए-नशात
अय मर्ग-ए-नागहाँ, तुझे क्या इन्तिज़ार है

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आईनः क्यों न दूँ, कि तमाशा कहें जिसे
ऐसा कहाँ से लाऊँ, कि तुझ सा कहें जिसे