पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२०८

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हस्रत ने ला रखा, तिरी बज़्म-ए-ख़याल में गुल्दस्त :-ए - निगाह, सुवैदा कहें जिसे फूंका है किसने गोश-ए-महब्बत में, अय ख़ुदा अफ़्सून-ए-इन्तिजार, तमन्ना कहें जिसे सर पर हुजूम-ए-दर्द-ए-ग़रीबी से, डालिये वह एक मुश्त-ए-ख़ाक, कि सहा कहें जिसे है चश्म-ए-तर में हस्रत-ए-दीदार से निहाँ शौने 'अिनाँ गुसेख़्तः, दरिया कहें जिसे दरकार है, शिगुफ़्तन-ए-गुलहा-ए- 'त्रैश को सुब्ह-ए-बहार, पँबः-ए-मीना कहें जिसे ग़ालिब, बुरा न मान, जो वा निज बुरा कहे ऐसा भी कोई है, कि सब अच्छा कहें जिसे २३१ शबनम ब गुल-ए-लालः न ख़ाली जि अदा है दाग़-ए-दिल-ए-बे दर्द नजर गाह-ए-हया है दिल शुदः-ए-कश्मकश-ए-हस्रत-ए-दीदार आईनः बदस्त-ए-बुत-ए-बदमस्त-ए-हिना है