पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२०९

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शो‘ले से न होती, हवस-ए-शो‘लः ने जो की
जी किस क़दर अफ़सुर्दगि-ए-दिल प जला है

तिम्साल में तेरी, है वह शोख़ी, कि बसद ज़ेंक़
आईनः ब अन्दाज़-ए-गुल, आग़ोश कुशा है

क़ुम्री कफ़-ए-ख़ाकिस्तर-ओ-बुलबुल क़फ़स-ए-रँग
अय नालः, निशान-ए-जिगर-ए-सोख़्तः क्या है

ख़ू ने तिरी अफसुर्दः किया, वह्शत-ए-दिल को
मा‘शूक़ि-ओ-बेहौसलगी, तुरफ़ः बला है

मजबूरि-ओ-दा‘वा-ए-गिरफ़्तारी -ए- उल्फ़त
दस्त-ए-तह-ए-सँग आमदः पैमान-ए-वफ़ा है

मा‘लूम हुआ हाल-ए-शहीदान-ए-गुज़श्तः
तेग़-ए-सितम आईन:-ए-तस्वीर नुमा है

अय परतव-ए-ख़ुर्शीद-ए-जहाँ ताब, इधर भी
साये की तरह हम प ‘अजब वक़्त पड़ा है

नाकरदः गुनाहों की भी हस्रत की मिले दाद
यारब, अगर इन करदः गुनाहों की सज़ा है

बेगानगि-ए-ख़ल्क़ से बेदिल न हो, ग़ालिब
कोई नहीं तेरा, तो मिरी जान, ख़ुदा है