पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गालिब, गर इस सफ़र में मुझे साथ ले चलें हज का सवाब नज़ करूँगा हुजूर की २३३ ग़म खाने में बोदा, दिल-ए-नाकाम, बहुत हैं यह रंज, कि कम है मै-ए-गुल्फ़ाम, बहुत है कहते हुये सानी से हया आती है, वर्न: है यों, कि मुझे दुर्द-ए-तह-ए-जाम बहुत है ने तीर कमाँ में है, न सय्याद कमी में गोशे में कफस के, मुझे आराम बहुत है क्या जोद को मानूं, कि न हो गरचेः रियाई पादाश-ए- 'अमल की तम-ए- ख़ाम बहुत है हैं अहल-ए-ख़िरद किस रविश-ए-ख़ास प नाजाँ पा बस्तगि-ए-रस्म-यो-रह-ए- 'अाम बहुत है जमजम ही प छोड़ो, मुझे क्या तौफ़-ए-हरम से आलूदः ब मै जामः-ए-एह्राम, बहुत है है केहर गर अब भी न बने बात, कि उनको इंकार नहीं और मुझे इब्राम बहुत है