पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जी इण्डता है फिर वही फुर्सत, कि रात दिन बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किये हुये ग़ालिब, हमें न छेड़ कि फिर जोश-ए-अश्क से बैठे हैं हम तहय्यः-ए-तूफ़ाँ किये हुये २३५ नवेद-ए-अम्न है बेदाद-ए-दोस्त, जाँ के लिये रही न तर्ज-ए-सितम कोई प्रास्माँ के लिये बला से गर मिशः-ए-यार तश्नः-ए-है रखू कुछ अपनी भी मिशगान-ए-ख़ू फ़िशा के लिये वह जिन्दः हम हैं, कि हैं रूशनास-ए-ख़ल्ङ्ग, अय खिज्र न तुम, कि चोर बने 'अम्र-ए-जाविदाँ के लिये रहा बला में भी मैं मुन्तिला-ए-अाफ़त-ए-रश्क बला-ए-जाँ है अदा तेरी इक जहाँ के लिये फलक न दूर रख उस से मुझे, कि मैं ही नहीं दराज दस्ति-ए-कातिल के इम्तिहाँ के लिये मिसाल यह मिरी कोशिश की है, कि मुर्रा -ए -असीर करे क़फ़स में फ़राहम ख़स आशियाँ के लिये