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ज़मीमः
१
क़त'अः
गये वह दिन, कि नादानिस्तः ग़ैरों की वफ़ादारी
किया करते थे तुम तकरीर, हम ख़ामोश रहते थे
बस, अब बिगड़े प क्या शर्मिन्दगी, जाने दो मिल जाओ
क़सम लो हमसे, गर यह भी कहें, क्यों हम न कहते थे
ज़मीमः
१
क़त'अः
गये वह दिन, कि नादानिस्तः ग़ैरों की वफ़ादारी
किया करते थे तुम तकरीर, हम ख़ामोश रहते थे
बस, अब बिगड़े प क्या शर्मिन्दगी, जाने दो मिल जाओ
क़सम लो हमसे, गर यह भी कहें, क्यों हम न कहते थे