पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२१८

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शिकवः समझो इसे, या कोई शिकायत समझो अपनी हस्ती से हूँ बेजार, कहूँ या न कहूँ अपने दिल ही से मैं अह्वाल-ए-गिरफ़्तारि-ए-दिल जब न पाऊँ कोई रामवार, कहूँ या न कहूँ दिल के हाथों से, कि है दुश्मन-ए-जानी अपना हूँ इक आफ़त में गिरफ्तार, कहूँ या न कहूँ मैं तो दीवानः हूँ, और एक जहाँ है ग़म्माज गोश हैं दर पस-ए-दीवार, कहूँ या न कहूँ आप से वह मिरा अवाल न पूछे, तो असद हस्ब-ए-हाल अपने फिर अश‘ार कहूँ या न कहूँ मुमकिन नहीं, कि भूलके भी आर्मीदः हूँ मैं दश्त-ए-ग़म में अाहू-ए-सय्याद दीदः हूँ हूँ दर्दमन्द, जब हो या इख्तियार हो गह नाल:-ए-कशीदः, गह अश्क-ए-चकीदः हूँ जाँ लब प आई, तो भी न शीरीं हुआ दहन अज बसकि, तलिख-ए-ग़म-ए-हिजराँ चशीदः हूँ