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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२१९

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ने सुब्हः से 'अिलाकः, न साग़र से राब्तः
मैं मा'रिज़-ए-मिसाल में, दस्त-ए-बुरीदः हूँ

हूँ ख़ाकसार, पर न किसी से है मुझको लाग
ने दानः-ए-फुतादः हूँ, ने दाम चीदः हूँ

जो चाहिये, नहीं वह मिरी क़द्र-ओ-मंज़िलत
मैं यूसुफ़-ए-बक़ीमत-ए-अव्वल खरीदः हूँ

हरगिज़ किसी के दिल में नहीं है मिरी जगह
हूँ मैं कलाम-ए-नग़्ज़, वले नाशुनीद: हूँ

अह्ल-ए-वर'अ के हल्क़े में हरचन्द हूँ ज़लील
पर 'आसियों के फ़िर्क़े में, मैं बरगुज़ीदः हूँ

पानी से सग गज़ीदः डरे जिस तरह, असद
डरता हूँ आइने से, कि मर्दुम गज़ीदः हूँ



मज्लिस-ए-शम्'अ 'अिज़ाराँ में जो आ जाता हूँ
शम्'अ साँ मैं तह-ए-दामान-ए-सबा जाता हूँ

होवे है जादः-ए-रह, रिश्तः-ए-गौहर हर गाम
जिस गुज़रगाह में, मैं आबलः पा जाता हूँ