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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२२३

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१३

अगर आसूदगी है मुद्द'आ-ए-रँज-ए-बेताबी
निसार-ए-गर्दिश-ए-पैमानः-ए-मै रोज़गार अपना

१४



असद, यह 'अज्ज़-ओ-बेसामानि-ए-फ़िर'अन तौअम है
जिसे तू बन्दगी कहता है, दा'वा है ख़ुदाई का

१५



हमने वह्शत कद:ए-बज़्म-ए-जहाँ में ज्यों शम्'अ
शो'लः-ए-'अिश्क को अपना सर-ओ-सामाँ समझा

१६



बसूरत तकल्लुफ़, बमा'नी तअस्सुफ़
असद, मैं तबस्सुम हूँ पशमुर्दगाँ का