पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२२४

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ख़ुद परस्ती से रहे बाहम दिगर, ना प्राश्ना बेकसी मेरी शरीक, आईनः तेरा प्राश्ना रब्त-ए-यक शीराज:-ए-वहशत हैं अज्जा-ए-बहार सब्जः बेगानः, सबा अावारः, गुल ना प्राश्ना १८ . फिर वह सू-ए-चमन आता है, ख़ुदा खैर करे रँग उड़ता है गुलिस्ताँ के हवादारों का अज आँजा कि हस्रत कश-ए-यार हैं हम रक़ीब-ए-तमन्ना-ए-दीदार हैं हम तमाशा -ए- गुल्शन, तमन्ना-ए-चीदन बहार आफ़रीना, गुनहगार हैं हम न ज़ौक़-ए-गरीबाँ, न परवा-ए-दामाँ निगह प्राश्ना-ए-गुल-ओ-ख़ार हैं हम