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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/२९

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शोर-ए-पन्द-ए-नासेह ने ज़ख़्म पर नमक छिड़का
आप से कोई पूछे, तुम ने क्या मज़ा पाया


दिल मिरा, सोज़-ए-निहाँ से, बेमहाबा जल गया
आतश-ए-खामोश की मानिन्द गोया जल गया

दिल में, जौक़-ए-वस्ल-ओ-याद-ए-यार तक, बाक़ी नहीं
आग इस घर में लगी ऐसी कि जो था जल गया

मैं ‘अदम से भी परे हूँ, वन: ग़ाफिल, बारहा
मेरी आह-ए-आतशीं से, बाल-ए-‘अंका जल गया

अर्ज़ कीजे, जौहर-ए-अन्देशः की गर्मी कहाँ
कुछ खयाल आया था वहशत का, कि सहरा जल गया

दिल नहीं, तुझको दिखाता वर्न:, दाग़ों की बहार
इस चराग़ाँ का, करूँ क्या, कारफरमा जल गया

मैं हूँ और अफ़सुर्दगी की आरज़, ग़ालिब, कि दिल
देख कर तर्ज़-ए-तपाक-ए-अहल-ए-दुनिया जल गया