पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/३०

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शोक हर रंग, रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला कैस तस्वीर के पर्दे में भी 'अरियाँ निकला ज़ख्म ने दाद न दी तंगि-ए-दिल की यारब तीर भी सीन:-ए-बिस्मिल से परअफ़शाँ निकला बू-ए-गुल, नालः-ए-दिल, दूद-ए-चराग़-ए-महफ़िल जो तिरी बज्म से निकला, सो परीशाँ निकला दिल-ए-हसरतज़द: था मायद.-ए-लज्जत-ए-दर्द काम यारों का, बनद्र-ए-लब-ओ-दन्दाँ निकला थी नौग्रामोज़-ए-फ़ना, हिम्मत-ए-दुश्वार पसन्द सख्त मुश्किल है, कि यह काम भी आसाँ निकला दिल में फिर गिरिये ने इक शोर उठाया, ग़ालिब आह जो क़तर: न निकला था, सो तूफ़ाँ निकला धमकी में मर गया, जो न बाब-ए-नबर्द था 'निश्क-ए-नबर्द पेश:, तलबगार-ए-मई था