पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/३१

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हवा - ए - सैर - ए - गुल, आईन: - ए - बेमेहरि-ए-कातिल कि अन्दाज-ए-बलूँ गलतीदन-ए-बिस्मिल पसन्द आया दहर में, नक्श-ए-वफा, वज्ह-ए-तसल्ली न हुआ है यह वह लफ़्ज़, कि शर्मिन्द:-ए-म अनी न हुया सब्ज:-ए-ख़त से तिरा, काकुल-ए-सरकश न दबा यह जमरुद भी हरीफ़-ए-दम-ए-अफ़ श्री न हुआ मैं ने चाहा था कि अन्दोह-ए-वफ़ा से छु, वह सितमगर मिरे मरने प भी राजी न हुआ दिल गुजरगाह-ए-खयाल-ए-मै-यो-साग़र ही सही गर नफस जाद:-ए-सरमंजिल-ए-तकवा न हुआ हूँ तिरे व अद: न करने में भी राजी, कि कभी गोश मिन्नत - कश-ए-गुलबाँग-ए-तसल्ली न हुआ किससे महरूमि-ए-किस्मत की शिकायत कीजे हमने चाहा था कि मर जायें, सो वह भी न हुआ मर गया सदमः-ए-यक जुंबिश-ए-लब से ग़ालिब नातवानी से हरीफ़-ए-दम-ए-'श्रीसा न हुआ