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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/४४

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महाबा क्या है, मैं ज़ामिन, इधर देख
शहीदान-ए-निगह का ख़ूँ-बहा क्या

सुन, अय ग़ारतगर-ए-जिन्स-ए-वफ़ा, सुन
शिकस्त-ए-शीशः-ए-दिल की सदा क्या

किया किसने जिगरदारी का दा'वा
शिकेब-ए-ख़ातिर-ए-'आशिक़, भला क्या

यह क़ातिल वा'दः-ए-सब्र आज़मा क्यों
यह काफ़िर फ़ितनः-ए-ताक़त रुबा क्या

बला-ए-जाँ है, ग़ालिब, उसकी हर बात
'अिबारत क्या, इशारत क्या, अदा क्या

२३



दर ख़ुर-ए-क़ेह्र-ओ-ग़ज़ब, जब कोई हमसा न हुआ
फिर ग़लत क्या है, कि हमसा कोई पैदा न हुआ

बन्दगी में भी, वह आज़ादः-ओ-ख़ुदबीं हैं, कि हम
उलटे फिर आये, दर-ए-का'बः अगर वा न हुआ

सबको मक़बूल, है दा'वा तिरी यकताई का
रुबरू कोई बुत-ए-आईन: सीमा न हुआ