पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/६९

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ताकि मैं जानूं, कि है इसकी रसाई वाँ तलक मुझको देता है, पयाम-ए-वादः-ए-दीदार-ए-दोस्त जबकि मैं करता हूँ अपना शिकवः-ए-जो फ़-ए-दिमाग सर करे है वह, हदीस-ए-जुल्फ़-ए-'अंबर बार-ए-दोस्त चुपके चुपके मुझको रोते देख पाता है, अगर हँस के करता है बयान-ए-शोख़ि-ए-गुफ़्तार-ए-दोस्त मेहरबानीहा -ए- दुश्मन की शिकायत कीजिये या बयाँ कीजे, सिपास-ए-लज्जत-ए-बाजार-ए-दोस्त यह ग़जल अपनी मुझे जी से पसन्द आती है आप है रदीफ.-ए-शे'र में, ग़ालिब, जिबस तकरार-ए-दोस्त ५५ गुलशन में बन्द-ओ-बस्त बरंग-ए-दिगर, है आज कुमरी का तौक हल्कः-ए-बेरून-ए-दर, है आज आता है एक पारः-ए-दिल हर फुगाँ के साथ तार-ए-नफ़स, कमन्द-ए-शिकार-ए-असर, है आज अय 'ग्राफ़ियत, किनारः कर, अय इन्तिजाम, चल सैलाब-ए-गिरियः दर पै-ए-दीवार-ओ-दर, है आज