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ताकि मैं जानूँ, कि है इसकी रसाई वाँ तलक
मुझको देता है, पयाम-ए-वा'दः-ए-दीदार-ए-दोस्त
जबकि मैं करता हूँ अपना शिकवः-ए-ज़ो'फ़-ए-दिमाग़
सर करे है वह, हदीस-ए-जुल्फ़-ए-'अंबर बार-ए-दोस्त
चुपके चुपके मुझको रोते देख पाता है, अगर
हँस के करता है बयान-ए-शोख़ि-ए-गुफ़्तार-ए-दोस्त
मेहरबानीहा-ए-दुश्मन की शिकायत कीजिये
या बयाँ कीजे, सिपास-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार-ए-दोस्त
यह ग़जल अपनी मुझे जी से पसन्द आती है आप
है रदीफ-ए-शे'र में, ग़ालिब, ज़िबस तकरार-ए-दोस्त
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गुलशन में बन्द-ओ-बस्त बरँग-ए-दिगर, है आज
क़ुमरी का तौक़ हल्क़:-ए-बेरून-ए-दर, है आज
आता है एक पारः-ए-दिल हर फ़ुग़ाँ के साथ
तार-ए-नफ़स, कमन्द-ए-शिकार-ए-असर, है आज
अय 'आफ़ियत, किनारः कर, अय इन्तिज़ाम, चल
सैलाब-ए-गिरियः दर पै-ए-दीवार-ओ-दर, है आज