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हुस्न, ग़मज़े की कशाकश से छुटा, मेरे बा‘द
बारे, आराम से हैं अह्ल-ए-जफा, मेरे बा‘द
मन्सब-ए-शेफ्तिगी के कोई क़ाबिल न रहा
हुई मा‘ज़ूलि-ए-अन्दाज़-ओ-अदा, मेरे बा‘द
शम‘अ बुझती है, तो उस में से धुआँ उठता है
शो‘लः-ए-'अिश्क़ सियह पोश हुआ, मेरे बा‘द
ख़ूँ है दिल ख़ाक में; अह्वाल-ए-बुताँ पर, या‘नी
इनके नाख़ुन हुये मुह्ताज-ए-हिना, मेरे बा‘द
दरख़ुर-ए-‘अर्ज़ नहीं, जौहर-ए-बेदाद को, जा
निगह-ए-नाज़ है सुरमे से खफ़ा, मेरे बा‘द
है जुनूँँ, अहल-ए-जुनूँँ के लिये आग़ोश-ए-विदा‘अ
चाक होता है गरीबाँ से जुदा, मेरे बा‘द
कौन होता है हरीफ़-ए-मै-ए-मर्द अफ़गन-ए-अिश्क़
है मुकर्रर लब-ए-साक़ी प सला, मेरे बा‘द
ग़म से मरता हूँ, कि इतना नहीं दुनिया में कोई
कि करे ता‘जियत-ए-मेह्र-ओ-वफ़ा, मेरे बा‘द