पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/८४

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मुझको पूछा, तो कुछ ग़ज़ब न हुआ मैं ग़रीब और तू ग़रीब नवाज़ असदुल्लाह ख़ाँ तमाम हुआ अय दरेगा, वह रिन्द-ए-शाहिद बाज मुशदः अय जौक़-ए-असीरी, कि नज़र आता है दाम ख़ाली, क़फ़स-ए-मुर्रा-ए-गिरफ्तार के पास जिगर-ए-तश्नः -ए- आजार, तसल्ली न हुआ जू-ए-तूं हम ने बहाई बुन-ए-हर ख़ार के पास मुंद गई खोलते ही खोलते आँखें, हय, हय खूब वक़्त आये तुम, इस 'आशिक़-ए-बीमार के पास मैं भी रुक रुक के न मरता, जो ज़बाँ के बदले दश्नः इक तेज़ सा होता, मिरे ग़मख्वार के पास दहन-ए-शेर में जा बैठिये, लेकिन अय दिल न खड़े हूजिये खूबान-ए-दिल आजार के पास देख कर तुझको, चमन बसकि नमू करता है खुद बख़ुद पहुँचे है गुल, गोशः- ए- दस्तार के पास