पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/९७

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धौल धप्पा उस सरापा नाज का शेवः नहीं हम ही कर बैठे थे, गालिब, पेश दस्ती एक दिन ९२ हम पर, जफ़ा से, तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ नहीं इक छेड़ है, वगरनः मुराद इम्तिहाँ नहीं किस मुँह से शुक्र कीजिये, इस लुत्फ़-ए-ख़ास का पुरसिश है और पा-ए-सुख़न दरमियाँ नहीं हमको सितम 'अज़ीज, सितमगर को हम 'अज़ीज़ ना मेहरबाँ नहीं है, अगर मेहरबाँ नहीं बोसः नहीं, न दीजिये, दुश्नाम ही सही आख़िर जबा तो रखते हो तुम, गर दहाँ नहीं हरचन्द जाँ गुदाजि-ए-कहर-ओ-'अिताब है हरचन्द पुश्त गर्मि -ए- ताब -यो- तवाँ नहीं जाँ मुतरिब-ए-तरान:-ए-हल मिन मजीद है लब पर्दः सज-ए-ज़मज़मः-ए-अलअमाँ नहीं खंजर से चीर सीनः, अगर दिल न हो दुनीम दिल में छुरी चुभो, मिशः गर चूचकाँ नहीं