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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/९७

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धौल धप्पा उस सरापा नाज़ का शेवः नहीं
हम ही कर बैठे थे, ग़ालिब, पेश दस्ती एक दिन

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हम पर, जफ़ा से, तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ नहीं
इक छेड़ है, वगरनः मुराद इम्तिहाँ नहीं

किस मुँह से शुक्र कीजिये, इस लुत्फ़-ए-ख़ास का
पुरसिश है और पा-ए-सुख़न दरमियाँ नहीं

हमको सितम 'अज़ीज, सितमगर को हम 'अज़ीज़
ना मेह्रबाँ नहीं है, अगर मेह्रबाँ नहीं

बोसः नहीं, न दीजिये, दुश्नाम ही सही
आख़िर ज़बा तो रखते हो तुम, गर दहाँ नहीं

हरचन्द जाँ गुदाज़ि-ए-कह्र-ओ-'अिताब है
हरचन्द पुश्त गर्मि-ए-ताब-ओ-तवाँ नहीं

जाँ मुतरिब-ए-तरान:-ए-हल मिन मज़ीद है
लब पर्दः सँज-ए-ज़मज़मः-ए-अलअमाँ नहीं

ख़ंजर से चीर सीनः, अगर दिल न हो दुनीम
दिल में छुरी चुभो, मिशः गर ख़ूँचकाँ नहीं