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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/९८

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है नँग-ए-सीनः, दिल अगर आतश कदः न हो
है 'आर-ए-दिल, नफ़स अगर आज़र फिशाँ नहीं

नुक़्साँ नहीं जुनूँ में, बला से हो घर खराब
सौ गज़ ज़मीं के बदले; बयाबाँ गिराँ नहीं

कहते हो, क्या लिखा है तिरी सरनविश्त में
गोया जबीं प सिज्दः-ए-बुत का निशाँ नहीं

पाता हूँ उस से दाद कुछ अपने कलाम की
रूहुलक़ुदुस अगरचेः, मिरा हमज़बाँ नहीं

जाँ है बहा-ए-बोसः, वले क्यों कहे, अभी
ग़ालिब को जानता है, कि वह नीमजाँ नहीं

९३


माने'-ए-दश्त नवर्दी कोई तदबीर नहीं
एक चक्कर है, मिरे पाँव में ज़ंजीर नहीं

शौक़ उस दश्त में दौड़ाये है मुझको, कि जहाँ
जादः ग़ैर अज़ निगह-ए-दीदः-ए-तस्वीर नहीं

हसरत-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार रही जाती है
जादः-ए-राह-ए-वफ़ा, जुज़ दम-ए-शमशीर नहीं