पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/९८

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है नँग-ए-सीनः, दिल अगर आतश कदः न हो है 'पार-ए-दिल, नफ़स अगर आज़र फिशां नहीं नुक्साँ नहीं जुनूं में, बला से हो घर खराब सौ गज जमीं के बदले; बयाबाँ गिराँ नहीं कहते हो, क्या लिखा है तिरी सरनविश्त में गोया जबीं प सिज्दः-ए-बुत का निशाँ नहीं पाता हूँ उस से दाद कुछ अपने कलाम की रूहुलकुदुस अगरचेः, मिरा हमज़बाँ नहीं जाँ है बहा-ए-बोसः, वले क्यों कहे, अभी ग़ालिब को जानता है, कि वह नीमजाँ नहीं माने -ए-दश्त नवर्दी कोई तदबीर नहीं एक चक्कर है, मिरे पाँव में जंजीर नहीं शौक़ उस दश्त में दौड़ाये है मुझको, कि जहाँ जादः गैर अज़ निगह-ए-दीदः-ए-तस्वीर नहीं हसरत-ए-लज्जत-ए-आजार रही जाती है जादः-ए-राह-ए-वफ़ा, जुज़ दम-ए-शमशीर नहीं