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'शिक्षा क्यों नहीं दी जाती'?

वास्तविक उन्नति हुई है।......अप्रैल १९२१ में उपस्थित किये गये नवीन वेतन-क्रम के अनुसार संयुक्त प्रान्त में बिना ट्रेनिंग पास किये सहायक अध्यापक कम से कम १२ रुपये प्रतिमास वेतन पाते हैं। ट्रेनिंग पास सहायक अध्यापक १५ रुपये से २० रुपये तक प्रति मास वेतन पाते हैं। और प्रधान अध्यापक २० रुपये से ३० रुपये तक पाते हैं।' मदरास के सम्बन्ध में कहा जाता है कि बिना ट्रेनिंग पास अध्यापकों का वेतन बढ़ाकर १० रुपये प्रतिमास कर दिया गया है और ट्रेनिंग पास अध्यापकों का १२ रुपये। बङ्गाल में अध्यापकों को ८ रूपये से १६ रुपये प्रतिमास तक वेतन दिया जाता है। आसाम में ट्रेनिंग पास अध्यापकों का वेतन ८ रुपये से बढ़ाकर १२ रुपये कर दिया गया है। इसी प्रकार अन्य प्रान्तों में भी कुछ न कुछ वृद्धि हुई है। हमको यह बात भली भाँति मालूम है कि इस 'वास्तविक उन्नति' के पहले आरम्भिक पाठशालाओं के अध्यापक ६ रुपये से ८ रुपये तक वेतन पाते थे जो कि कुलियों की मज़दूरी से भी कम था। पुरुष कोई और काम भी करके इस आय पर अपना दुःखी जीवन व्यतीत कर सकता था पर स्त्री यह नहीं कर सकती थी। मिस्टर पाल[१] ने अध्यापकों की जिस योग्यता और बुद्धि पर विशेषरूप से विचार किया है उसका निपटारा इसी ६ रुपये से लेकर १२ रुपये मासिक आय से हो जाता है। मिस मेयो भारत के ग्रामीण अध्यापक को 'उदासी से भरा और अयोग्य' तथा असमर्थ बच्चों के ढेर पर 'लुढ़के हुए भारी कम्बल' के समान बतलाती है तब उसे यह स्मरण रखना चाहिए कि उस बेचारे ग्रामीण अध्यापक का एक मास का वेतन उसकी पुस्तक मदर इंडिया की एक प्रति मोल लेने के लिए भी यथेष्ट नहीं है। यदि आप प्रति मास दो डालर वेतन दें तो आपको २० डालर की योग्यता का व्यक्ति नहीं मिल सकता[२]


  1. मदर इंडिया के चौथे पृष्ठ पर मिस मेयो द्वारा उद्धृत।
  2. ग्रेट ब्रिटेन में प्रमाणपत्र-प्राप्त अध्यापक का वेतन २५० पौंड वार्षिक है और जिसे प्रमाण-पत्र न मिला हो उसका १४५ पौंड वार्षिक है। (लेबर इयर बुक १९२६ ई॰ पृष्ठ २७३) अमरीका में अध्यापकों का औसत दर्जे का वेतन १२४३ शिलिंग वार्षिक से भी अधिक होता है (अमरीकन इयर बुक १९२५ ई॰ पृष्ठ १०९२)