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दुखी भारत

जब अगस्त १९१७ में मिस्टर मान्टेग्यू ने वह प्रसिद्ध घोषणा की थी जिसमें ग्रेट ब्रिटेन ने भारत को शासन-सुधारों द्वारा दर्जा बदर्जा स्वराज्य देने का वादा किया था। मिस्टर मान्टेग्यू भारत में इसलिए आये थे कि वेवहाँ की स्थिति की जाँच करें और पार्लियामेंट को बतलावें कि उस वादे को कार्य्य-रूप में कहाँ तक परिणत किया जा सकता है। कर्टिज़ महाशय भी कुछ कुछ ऐसे ही काम के लिए यहाँ आये थे। जब 'सेक्रेट्री आफ़ स्टेट' ने कुछ देने की कोशिश की तो 'गोल-मेज-दल' के इस बहादुर सवार का यह देखना काम हो गया कि न तो कुछ दिया जाय और न उस वादे की कुछ पाबन्दी हो। वह दो प्रभावशाली अँगरेजों से, जो भारतीय सिविल सर्विस में थे, उसके गोल-मेज-दल के सदस्य भी थे और एक प्रान्त में ऊँचे पदों पर थे, मिलकर षड्यन्त्र रचने लगा। इस षड्यन्त्र का उद्देश यह था कि भारत का भविष्य निश्चय करने में ग्रेट ब्रिटेन के गोरे उपनिवेशों को भी कुछ हिस्सा और कहने का अधिकार मिले। और जिन जंज़ीरों से भारत ब्रिटिश साम्राज्य का गौरव बढ़ाने के लिए बाँधा गया है उनको और भी मजबूत बनाया जाय। अकस्मात एक काग़ज़ जिसमें इस षड्यन्त्र की नीचतापूर्ण बातें थीं महात्मा गान्धी के हाथ लग गया और उन्होंने उसको सार्वजनिक रूप दे दिया। कर्टिज़ महाशय जहाँ के तहाँ पकड़ लिये गये और उन्होंने उस 'गोल-मेज-दल' की विज्ञप्ति को इष्ट-मित्रों के नाम 'निजी चिट्ठी' बता कर अपना पिण्ड छुड़ाया। वे और भारतीय सिविल सर्विस के उनके दोनों षड्यन्त्रकारी मित्र मान्टेग्यूचेल्मस् फोर्ड रिपोर्ट की उन बातों के रचयिता होने की प्रसिद्धि पा चुके हैं जो १९१९ के सुधारों—क़ानूनों,—को कलङ्कित करनेवाली थीं।

अगस्त १९२५ में कर्टिज़ महाशय 'मैसा चुसेट्स' (अमरीका) पहुँचे। वे कैथरिन मेयो से मिले और उसकी 'भय के द्वीप' नामक रचना पर ऐसे मुग्ध हो गये कि उस पुस्तक के अँगरेज़ी-संस्करण की भूमिका लिख दी। भूमिका की भाषा से यह अत्यन्त सम्भव प्रतीत होता है कि कर्टिज़ महाशय मिस मेयो की ख़र्चीली भारत-यात्रा के लिए यद्यपि धन नहीं जुटा सके पर उनका यह आशय अवश्य था कि फ़िलीपाइन्स पर लिखी गई