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दुखी भारत

पुनर्विवाह-प्रथम, स्त्री के विषय में नारद कहते हैं:*[१]-

"पति के लापता हो जाने पर या मर जाने पर, सन्यासी हो जाने पर. नपुंसक या जातिच्युत हो जाने पर-इन पांचों दशाओं में-स्त्री को अधिकार है कि वह दूसरा पति चुन ले।"

अनुपस्थित पति की प्रतीक्षा करने के लिए नारद भिन्न-भिन्न जातियों के लिए भिन्न भिन्न अवधि नियत करते हैं। और कहते हैं कि अवधि समाप्त हो जाने पर अदि स्त्री दूसरे पुरुष के साथ जाकर रहने लगे तो उस पर कोई अपराध नहीं लगाया जा सकता। पुरुषों को नारद प्रत्यक्षतः अधिक स्वतंत्रता देते हैं। सबके लिए वे इस आज्ञा से आरम्भ करते हैं कि 'जब कोई झगड़ा स्वेच्छाचार के कारण उत्पन्न हो-स्वेच्छाचार जो कि पारस्परिक द्वेष और घृणा का भी कारण होता है-तब पति और पत्नी को चाहिए कि वे एक दूसरे के विरुद्ध अपने सम्बन्धियों या राजा के समीप कोई अभियोग न उपस्थित करें। और फिर कहते हैं कि जब पारस्परिक घृणा के कारण पति-पत्नी एक दूसरे का त्याग करते हैं तब वे एक बड़ा पाप करते हैं।

व्यभिचारिणी को दण्ड देने के लिए नारद अत्यन्त कड़े विधान निश्चित करते हैं परन्तु यह कहने में भी नहीं चूकते कि 'यदि कोई पुरुष अपनी आज्ञाकारिणी, मृदुभाषिणी, गुणवती, सदाचारिणी और सन्तानवती स्त्री का त्याग करे तो राजा को चाहिए कि उसे स्वकर्त्तव्य पर लाने के लिए कठोर दण्ड दे।'

वैवाहिक प्रतिज्ञा को भिन्न भिन्न परिस्थितियों में भङ्ग करने के लिए पति पर क्या क्या अपराध लगाये जा सकते हैं इसकी मनु ने विस्तृत विवेचना की है। उदाहरण के लिए, वे आज्ञा देते हैं कि 'यदि पत्नी पति से घृणा करती है। सो उसे चाहिए कि वह एक वर्ष तक इस घृणा-भाव को सहन करे। वर्ष की समाप्ति पर उसे चाहिए कि उसने पत्नी को जो कुछ दिया हो वह उससे वापस ले ले और उसके साथ कभी न रहे।†[२] यदि कोई भी परपुरुष के साथ

  1. * अध्याय १२, श्लोक ९७-१०१
  2. † मनुस्मृति अध्याय, श्लोक ७७।