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उन्नीसवाँ अध्याय
मिस्टर विन्सटन चर्चिल के लिए एक उपहार

'हिन्दू' के नवीन वार्षिकाङ्क में लिखते हुए कर्नेल जे॰ सी॰ वेजउड हमें बतलाते हैं कि किस प्रकार मिस्टर विन्स्टन चर्चिल, ब्रिटिश चान्सलर आफ़ दी एक्सचेकर, ने पार्लियामेंट के एक बरामदे में उनके पास से निकलते हुए उन्हें मदर इंडिया की एक प्रति उपहार-स्वरूप भिजवा देने की इच्छा प्रकट की थी। परन्तु कर्नेल साहब उस पुस्तक को पहले ही पढ़ चुके थे। उपहार के ही रूप में उन्हें उसकी एक प्रति मिल चुकी थी। मिस्टर चर्चिल ने पूछा—'क्या! पढ़ चुके! अब आप अपने मित्रों के सम्बन्ध में क्या सोचते हैं?" इसी में उन्होंने वास्तविक घृणा और क्रोध के साथ इतना और जोड़ दिया—'मैं शिशुओं के ऊपर किये गये इन घोर अत्याचारों के अतिरिक्त और कुछ भी सहन कर सकता था।'

मिस मेयो की पुस्तक में शिशुओं के ऊपर किये गये अत्याचार के जो उदाहरण आये हैं उन्हें पढ़कर मिस्टर चर्चिल अत्यन्त भयाकुल हो उठे हैं। मिस्टर चर्चिल उस ढङ्ग के राजनीतिज्ञ हैं जो अपनी इच्छा के अनुसार काम करने पावें तो संसार में बिलकुल शान्ति नहीं रह सकती। उस साम्राज्य का अभाग है जिसकी बागडोर ऐसे हाथों में है! मिस मेयो ने शिशुओं के ऊपर अत्याचार-सम्बन्धी जो आक्षेप किये हैं उनका आधार १८९१ ईसवी में भारतवर्ष के महिला-डाक्टरों-द्वारा बड़ी व्यवस्थापिका सभा में उपस्थित किया गया एक प्रार्थना-पत्र है। सूची में कुल १३ घटनाएँ हैं। इनमें से मिस मेयो ने ७ अत्यन्त बुरी घटनाओं को चुना है। भारतवर्ष ३१ करोड़ ५० लाख मानवों का देश है जो लगभग बीस लाख वर्ग मील भूमि में बसे हुए हैं। ऐसे देश में दस-बारह घटनाओं के आधार पर सारे देश के ऊपर कोई आक्षेप नहीं किया जा सकता। परन्तु यह बात महत्त्व से ख़ाली नहीं है कि मिस मेयो को अपना पक्ष समर्थन करने के लिए एक ३० वर्ष प्राचीन सरकारी काग़ज़ की खोज