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दुखी भारत

फिर ऐसी ही बातें कही गई। जब रूस और जापान के पश्चात् गोर्की रूसी क्रान्ति के लिए धन-संग्रह करने के उद्देश्य से अमरीका गया तो पूँजीपतियों के इन समाचार-पत्रों ने उसके विरुद्ध अपनी इसी नीति का प्रयोग किया। परिणाम यह हुआ कि गोर्की को धन-संग्रह करने में पूर्ण अलफलता हुई। संयोग से गोर्की का विवाह ईसाई-धर्म के नियमानुसार नहीं हुआ था इसलिए यह निन्दा का दफ्तर गला फाड़ फाड़ कर चिल्लाने लगा कि जिस स्त्री के साथ गोर्की ने विवाह किया है वह एक व्यभिचारी की कलङ्किता नारी है। समाचार-पत्रों में, व्याख्यान-मञ्चों पर और धर्म-वेदियों पर सर्वत्र गोर्की की निन्दा की गई और उसे नैतिक कोढ़ी कहा गया। पिछले अध्याय में हम न्यायाधीश लिंडसे के सम्बन्ध में लिख चुके हैं। न्यायाधीश महोदय एक दृढ़ और स्वतंत्र विचार के सुधारक हैं इसलिए इस निन्दा के दफ्तर ने आपको विशेषरूप से अपना लक्ष्य बनाया है। निस्सन्देह लिंडसे के सम्बन्ध में इस ने अत्यन्त नीच उपायों का सहारा लिया। लिंडसे के विरुद्ध भयानक अपराध लगाने के लिए इस दफ्तर ने उनके 'शिशु-न्यायालय को अपनी आधारशिला बनाया। उपटन सिंक्लेयर का कथन है कि इस निन्दा के दफ्तर ने अपनी निन्दाजनक बातों को सत्य सिद्ध करने के लिए झूठी गवाहियाँ मोल ली और एक झूठा सुधारक-संघ भी स्थापित किया।

मिस मेयो ने अमरीकावासियों की दृष्टि में एक सम्पूर्ण राष्ट्र को पतित, ठहराने के लिए इस निन्दा के दफ्तर के इन्हीं प्रतिदिन के उपायों का अवलम्बन किया है। उनके मत्थे उसने उन समस्त दुर्वासनाओं और महापापों को मढ़ दिया है जो धार्मिक विचारवालों के हृदय में किसी जाति के प्रति घृणा उत्पन्न कर सकते हैं।.........

अमरीका के पत्र-सम्पादक लोग घटनाओं की सूचनाओं को 'संवाद-कथाएँ' कहते हैं या अधिकतर केवल कथाएँ कहते हैं। भेंट की बातचीत को भी 'कथाएँ' ही कहते हैं। और अधिकांश में उनमें सचाई कम होती है, कथा भाग ही अधिक रहता है। मिस मेयो ने अपनी कथाओं में मदर इंडिया में––इसी शैली का अनुकरण किया है। परन्तु उसकी कुछ कथाएँ इतनी मूर्खतापूर्ण हैं कि अमरीकन-समाचार-पत्रों के आदर्श की दृष्टि से उनकी जाँच