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दुखी भारत

लिए व्यायाम करना वर्जित है। अति श्रम करना भी वर्जित है। घर के भीतर और बाहर व्यायाम करने की अनेक विधियाँ हैं।......

"स्नान करने के पश्चात् शरीर को तौलिये से पोंछ कर सुखा लेना चाहिए और फिर समुचित रीति से वस्त्र धारण करना चाहिए..."

भोजन के सम्बन्ध में सविस्तर वर्णन किया गया है। वयस्क लोगों के लिए केवल दो बार भोजन करने की आज्ञा है। और कहा गया है—'जल्दी जल्दी भोजन नहीं करना चाहिए.....भोजन करने से पहले प्रत्येक व्यक्ति को भोजन की परीक्षा कर लेनी चाहिए क्योंकि मनुष्य जो भोजन करता है उसी से मस्तिष्क बनता है। और वह वस्तु केवल मस्तिष्क है जो मनुष्य को अच्छा, बुरा, मूर्ख या दुष्ट बना सकती है।

ठाकुर साहब कहते हैं कि किसी के शयन-गृह में झाँकना उचित नहीं है। परन्तु प्राचीन काल के चिकित्सा और धर्म-शास्त्र के प्रणेतागण वहाँ के लिए भी नियम बनाने से नहीं चूके।' इस प्रकार वे हिन्दुओं के महान् चिकित्साशास्त्र-वेत्ता सुश्रुत के दाम्पत्य-सम्भोग-सम्बन्धी[१] नियमों को उद्धृत करते हैं। मनु[२] जैसे धार्मिक विधान बनानेवालों ने भी इस आवश्यक विषय की अवहेलना नहीं की। अति-सम्भोग के दोषों पर उन्होंने बड़ी सावधानी के साथ जोर देकर लिखा है। कोई भी व्यक्ति जो हिन्दू-साहित्य को अवलोकन करेगा तुरन्त यह जान जायगा कि मिस मेयो के आक्षेप—जैसे उसका यह कहना कि हिन्दुओं को किसी ने ब्रह्मचर्य्य की शिक्षा दी ही नहीं—कितने मिथ्या हैं। सच बात तो यह है कि घर बार छोड़ कर योगी बन जाने की सीमा तक ब्रह्मचर्य्य की शिक्षा दी गई है।


  1. "फिर सुश्रुत लिखते हैं कि गर्मी की ऋतु में १५ वें दिन से पूर्व और अन्य ऋतुओं में चौथे दिन से पूर्व विषय-भोग नहीं करना चाहिए। जिन्होंने बहुत भोजन कर लिया हो, जो भूखे, प्यासे या अधीर हों, जिनकी अवस्था बचपन की या वृद्ध हो, जिनके किसी अङ्ग में पीड़ा हो, और जिनके पाख़ाना या पेशाब लगा हो उन्हें सम्भोग-सुख से बचना चाहिए,।" उसी पुस्तक से, पृष्ठ ७७।
  2. उसी पुस्तक से, पृष्ठ ७६,७७