उसके अर्थशास्त्र के शीशे से दिखाये गये दृश्य वास्तव में सरकारी शीशे से दिखाये गये दृश्यों के कुछ बिगाड़ के साथ रूपान्तर-मात्र हैं। रेलों के कारण भारतवर्ष की प्राचीन उन की सवारियां नष्ट हो गई हैं। परन्तु निर्धन लोग 'इस अभी जायँगे और लौट आयँगे' के विनाद-मात्र के लिए व्यर्थ धन नहीं व्यय कर सकते।
बम्बई-प्रान्त के कृषि-विभाग के डाइरेक्टर डाक्टर हरल्ड मैन ने, पेंशन लेते समय वहाँ के कृषकों की आर्थिक दुरवस्था के सम्बन्ध में, गत अक्तूबर टाइम्स आफ़ इंडिया के संवाददाता से वार्तालाप करते हुए, कहा था:––
"मुझे यह कहने में ज़रा भी संकोच नहीं कि कृषकों की रहन-सहन का आदर्श ऊँचा अवश्य हो गया है परन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि अधिकांश २ मास में कि जिन स्थानों में प्रायः अकाल पड़ा करता है––वहाँ के पूरे ७५ प्रतिशत निवासियों की आर्थिक दशा स्वयं उनके आदर्श से बहुत नीचे है और उसे अच्छी स्थिति नहीं कह सकते। इसके विरुद्ध जो स्थान सम्पन्न समझे जाते हैं वहाँ केवल ६६ प्रतिशत लोग ऐसे होते हैं जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी कही जा सकती है। मैं यह स्वीकार करता हूं कि इस विषय पर विस्तार के साथ कोई मत निश्चित करना अत्यन्त कठिन है, क्योंकि टिप्पणियों की तुलना करने के लिए यथेष्ट साधन पास नहीं हैं। परन्तु बीस वर्ष के सावधानी के साथ किये गये अनुसन्धान और अनुभव के पश्चात् मेरी निष्पक्ष सम्मति यह है कि गत बीस वर्षों में गांवों में जीवन का आदर्श ऊँचा हो गया है परन्तु इस आदर्श के साथ गाँव की वृहत् जनता का जो वास्तविक सम्बन्ध है उसमें कुछ हुआ सुधार नहीं
कृषि में कुछ ऐसे सुधार करने की राय देने के पश्चात्, जो सम्भव हो सकते हैं और जिन्हें कृषक बिना किसी अधिक व्यय के स्वयं कर सकते हैं डाक्टर मैन ने आगे इस प्रकार कहा था––
"परन्तु इस रीति से भी बहुत बड़े दायरे में कोई सुधार तब तक नहीं किया जा सकता जब तक सरकार और समाज-सुधारक लोग यह न स्वीकार कर लें कि कृषि करनेवाली सम्पूर्ण जनता की उन्नति का रहस्य केवल इतना ही है कि उसे भर भर पेट भोजन मिलने लगे। भारतवर्ष की उन्नति में सबसे बड़ा बाधक कृषकों का खाली पेट है। डाकृर मैन ने भारतवर्ष छोड़ने