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विषय-प्रवेश


कार से सभ्यता के शिखर पर पहुँच गई हैं और उन्होंने अपनी बुद्धि के कार्य्यों को बहुत विस्तृत किया है.......परन्तु इस सम्पूर्ण समय में हिन्दू लोग जहाँ के तहाँ गड़े रहे। उनमें हमें मानसिक या नैतिक उन्नति का कुछ पता नहीं चलता। कला और विज्ञान में भी उनकी कोई उन्नति दृष्टिगोचर नहीं होती। प्रत्येक निष्पक्ष निरीक्षक निःसन्देह यह स्वीकार करेगा कि अब वे उन जातियों से बहुत पीछे हैं जिन्होंने उनके बहुत बाद अपना नाम सभ्यता की सूची में अङ्कित किया था।"

कदाचित् बिन्दुओं के स्थान पर कुछ शब्द छोड़ दिये गये हैं। वह इसलिए कि यदि वे रहते तो उनसे इस बात का पता चलता कि डुबोइस में अतिशयोक्ति दोष था। मूल में वह वाक्य इस प्रकार है—'अपनी बुद्धि के कार्यों को बहुत विस्तृत किया है और लगभग मानव बुद्धि की सर्वोच्च सीमा तक पहुंचा दिया है।'

मिस मेयो ने उक्ति-चिह्नों को किस धूर्तता के साथ प्रयोग किया और भारत में जिन लोगों से वह मिली उनके वक्तव्य उपस्थित करने में कैसी विवेक-शून्यता से काम लिया? इन बातों के कुछ और उदाहरण मैं इसी क्रम में दे देना चाहता हूँ। नामों को छोड़ देना उसकी स्वाभाविक शैली है। 'वह व्यक्ति जिसकी सत्यता पर कोई सन्देह नहीं कर सकता,' 'एक मुसलमान ज़मींदार,' 'एक वकील,' 'एक भारतीय नरेश' बिना अपने नाम और पते के उपस्थित किये जाते हैं। पर जिन दो चार उदाहरणों में उसने नामों का उल्लेख किया है वे उसकी शुद्धता और सत्य-प्रियता के साधारण आदर्श की जाँच करने के लिए पर्याप्त हैं।

दूसरे लोगों को उसने किस प्रकार उपस्थित किया है इसकी जाँच मैंने परिश्रम के साथ की है और ऊपर मैंने मिस मेयो के विरुद्ध जो अभियोग लगाये हैं, इस जाँच-पड़ताल से उनकी और भी पुष्टि होती है।

मदर इंडिया में जिन लोगों का वर्णन उनके नामों के साथ किया गया है, दुर्भाग्य से उनमें पनगल के राजा भी हैं[१] उनके नाम के साथ मिस मेयो


  1. मदर इंडिया पृष्ठ, १६५