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उनतीसवाँ अध्याय
'पैग़म्बर के वंशज'

मिस मेयो की पुस्तक से यह प्रकट होता है कि 'पैग़म्बर के वंशज, भारत की राजनैतिक उन्नति के विरोधी हैं; और वे ब्रिटिश सरकार के इतने अधिक भक्त हैं कि वे हिन्दुओं से, उनके राजनैतिक आन्दोलनों के कारण घृणा करते हैं'। इसलिए उसने मुसलमानों की प्रशंसा की है और बुद्धिमानी के साथ उनकी किसी प्रकार की समालोचना नहीं की। उसने उन मुसलमान नेताओं के व्याख्यानों से उद्धरण दिये हैं जो हिन्दुओं के विरोधी हैं। हिन्दू-मुसलिम-वैमनस्य भारतवर्ष में अँगरेज़ों के लिए सर्वोत्तम अस्त्र है। उन्हीं पर ब्रिटिश-शासन की नींव जमी है। परन्तु यह कहना कि मुसलमान जाति ही भारत की स्वतंत्रता के विरुद्ध है, उसकी बुद्धि और देश-भक्ति पर इतना घोर कलङ्क लगाना है कि हम यहाँ दिसम्बर १९२७ में भिन्न भिन्न महासभाओं और अधिवेशनों में दिये गये मुसलमान नेताओं के व्याख्यानों से कुछ बड़े बड़े उद्धरण दे देना अनुचित नहीं समझते।

श्रीयुत मुहम्मद अली जिन्ना एक देशभक्त मुसलमान नेता हैं। वे सरकार-द्वारा मुडीमैन कमेटी के सदस्य नियुक्त हुए थे। यह कमेटी १९२४ ईसवी में सुधारों की कारगुज़ारी की जाँच करके विवरण उपस्थित करने के लिए बनाई गई थी। इसके पश्चात् वे सरकार-द्वारा स्कीन-कमेटी के सदस्य नियुक्त किये गये थे। इस कमेटी को सेना में भारतीय अफ़सर भर्ती करने के प्रश्न पर विवरण उपस्थित करने का कार्य्य सौंपा गया था। इस प्रकार उन्हें सरकार भी एक प्रभाव-शाली मुसलमान नेता स्वीकार करती है। ताहम बड़ी व्यवस्थापिका सभा में और उसके बाहर भी विदेशी शासन के विरुद्ध उन्होंने वैसे ही दृढ़ विचार प्रकट किये हैं जैसा कि कोई राष्ट्रवादी हिन्दू कर सकता है।