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दुखी भारत


सर लुइस मैलेट ने, जब वे उपभारत-मंत्री थे तब, कहा था:-

"भारतवर्ष की वर्तमान शासन-व्यवस्था केवल इसीलिए अब तक विद्यमान है कि यह सब प्रकार की स्वतंत्र और बुद्धिमानी की आलोचनाओं से बची हुई है।"

नियम के अनुसार वायसराय लोग भी जब भारतवर्ष में आते हैं तब यहाँ की कोई भाषा नहीं जानते होते। और अपने यहां रहने के काल में वे किसी भाषा को टूटे फूटे शब्दों में बोल लेने के अतिरिक्त कदाचित ही सीखते हैं। जनता के सम्पर्क में वे दूसरों के द्वारा-छोटे अँगरेज़ अफसरों या अँगरेज़ी जाननेवाले भारतीयों के द्वारा-आते हैं।

पार्लियामेंट में जान ब्राइट ने अपने एक भाषण में कहा था:-

"भारतवर्ष का गवर्नर जनरल (वायसराय) उस देश के सम्बन्ध में थोड़ा या कुछ न जानते हुए वहाँ जाता है। मैं जानता हूँ कि जब वह नियुक्त किया जाता है तब क्या करता है। वह मिस्टर मिल-रचित 'भारतवर्ष के इतिहास के अध्ययन में निमग्न हो जाता है। और इस बड़ी पोथी को पढ़ कर वह कोई अच्छा गवर्नर जेनरल नहीं हो जाता जैसा कि कोई व्यक्ति मूर्खता वश अनुमान कर सकता है। वह बीस भाषाएँ बोलनेवाले बीस राष्ट्रों के देश भारतवर्ष में जाता है। इन राष्ट्रों के सम्बन्ध में वह कुछ नहीं जानता। और न उसे इन भाषाओं के व्याकरण, उच्चारण या अर्थ का कुछ ज्ञान होता है।......वह देश या उसके वासियों के सम्बन्ध में कुछ नहीं जानता। वह अफसरों से घिरा रहता है, अफसरी हवा में वह साँस लेता है और उसके बाहर उसे प्रत्येक वस्तु धुंधली और अन्धकार से पूर्ण दिखाई पड़ती है। आप उस पर ऐसे ऐसे कार्यों का भार लाद देते हैं जो किसी भी मनुष्य के मानसिक और शारीरिक शक्ति से बाहर होते हैं। इसलिए उन कार्यों को वह पूरा नहीं कर पाता ।......प्रत्येक अच्छी वस्तु को नष्ट करने की उसे महान् शक्ति प्राप्त रहती है। यदि वह चाहे तो भारत के हित के लिए किये गये प्रत्येक प्रस्ताव को रद कर सकता है। परन्तु जहाँ तक कोई अच्छा कार्य करने का सम्बन्ध है, मैं यह दिखला सकता हूँ कि उन बड़े बड़े प्रान्तों का ध्यान रखते हुए जिन पर कि वह शासन करता है, वह वास्तव में कोई ऐसा काय करने के लिए सर्वथा असमर्थ होता है जिसकी उन प्रान्तों को आवश्यकता होती है।......मैं इस समय ऐसा व्यक्ति नहीं देखता हूँ और न मैंने ऐसा व्यक्ति कभी देखा है जो भारतवर्ष का शासन करने के योग्य हो। यदि कोई