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दुखी भारत

उन अँगरेज़ों की आधी भी अयोग्यता होती तो यह सार्वजनिक अपमान समझा जाता[१]

डाक्टर बी॰ एच॰ रथ फोर्ड ने अपनी 'आधुनिक भारत और उसकी समस्याएँ[२]' नामक पुस्तक में, जो अभी हाल ही में प्रकाशित हुई है, १६१ वें पृष्ट पर अँगरेज़ों की योग्यता की परीक्षा की है और इसे 'भारतवर्ष की निर्धनता का एक मुख्य कारण बतलाया है।' वे इस बात की घोषणा करते हैं कि भारत की अँगरेज़ी सरकार वहीं तक योग्य है जहाँ तक अँगरेज़ों के स्वार्थ का सम्बन्ध है। जिस रीति से वह देश का प्रबन्ध और शासन करती है उससे केवल ग्रेटब्रिटेन को लाभ पहुँच सकता है। भारतवर्ष और भारतवासियों की उन्नति के सम्बन्ध में वे इसे विस्मयोत्पादक और लज्जाजनक अनुपयुक्त बतलाते हैं। इसके सबूत में वे कहते हैं कि:––

"यह सरकार जनता की शिक्षा की अवहेलना करती है; गाँवों में सफाई और चिकित्सा की व्यवस्था नहीं करती; शान्ति नहीं स्थापित रख सकती; निर्धनों के निवास की ओर ध्यान नहीं देती; ऋण देनेवालों से कृषकों की रक्षा करने की परवाह नहीं करती; कृषि-सम्बन्धी बैंक नहीं खोलती, इसी प्रकार कृषि की उन्नति और विकास की ओर ध्यान नहीं देती, भारतीय उद्योग धन्धों की वृद्धि नहीं करती; ट्रामगाड़ियाँ चलाने, बिजली की रोशनी का प्रबन्ध करने और दूसरी सार्वजनिक सेवाओं में अँगरेज़ व्यापारियों के पूरे दखल को नहीं रोकती; और भारतीय करेंसी का लन्दन के हित में प्रयोग किये जाने की रोक-थाम नहीं करती।"

इन बातों के सामने क्या डाक्टर स्थरफोर्ड के निम्नलिखित शब्दों पर किसी को आश्चर्य हो सकता है?––

"भारतवर्ष में जिस पद्धति के अनुसार ब्रिटिश शासन चलाया जा रहा है वह इस संसार में अत्यन्त निकृष्ट और पतित––एक राष्ट्र की दूसरे राष्ट्र द्वारा लूट-खसोट की––पद्धति है[३]।"


  1. देखिए 'इंडिया' नामक लन्दन का साप्ताहिक पत्र, अप्रेल, १९०९, पृष्ठ २०९ सन्डर लेंड द्वारा उद्धत।
  2. लेबर पब्लिशिंग कम्पनी, १९२६।
  3. 'आधुनिक भारत', पृष्ठ ७७