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अँगरेज़ी राज्य पर अँगरेज़ों की स्मृतियां

श्रीयुत एडवर्ड थामसन अपनी 'तमग़े की पीठ'[१] नामक पुस्तक में लिखते है:––

"हम अँगरेज़ लोग इस बात का खण्डन करेंगे कि हमारा भारत- साम्राज्य गुलामों के ऊपर मालिकों का शासन है। फिर भी हम उनको ऐसे ही देखते हैं जैसे गुलाम बेचने वाले अपने गुलामों को देखते हैं और हम अपने मित्र भारतीय नागरिकों के गुणों को उतना ही महत्व देते हैं जितना एक शिकारी अपने कुत्तों के गुणों को महत्त्व देता है।"

कुछ वर्ष हुए कांगो के अत्याचारों के समय में आयर्लेंड के एक लेखक ने लिखा था[२]––

"अँगरेज़ों को स्वतन्त्रता प्रिय है, पर केवल अपने ही लिए। अन्याय के समस्त कारणों से वे घृणा करते हैं, केवल उनसे नहीं जिन्हें वे स्वयं करते हैं। वे इतने स्वतन्त्रताप्रिय हैं कि वे कांगो के मामले में हस्ताक्षेप करते हैं और चिंघाड़ते हैं कि––'बेलजियम को धिक्कार है। परन्तु वे यह भूलते जाते हैं कि उनकी एड़ियाँ भारतवर्ष की गरदन पर लगी हुई हैं।"

श्रीयुत विल्फ्रेड स्कावेन ब्लन्ट ने, अपनी 'मिस पर अँगरेज़ी शासन का रहस्यपूर्ण इतिहास' नामक पुस्तक में, भारत में अँगरेज़ी राज्य के सम्बन्ध में कुछ प्रबल और महत्त्व-पूर्ण प्रमाण दिये हैं। इन बातों को उन्होंने अनुकूल परिस्थिति में बहुत निकट से देखा था। वे लार्ड लिटन के व्यक्तिगत रूप से बड़े घनिष्ट मित्र थे और लार्ड लिटन उस समय भारतवर्ष के वायसराय थे ब्लन्ट महाशय भारतवर्ष की परिस्थितियों का अध्ययन करने के लिए यहाँ आये थे। ब्रिटिश राजनीति में वे अपरिवर्तनवादी दल के सदस्य थे और भारतवर्ष में अँगरेज़ों की कारगुज़ारी को बड़े अच्छे रूप में देखना चाहते थे। इसके अतिरिक्त स्वयं वायसराय और बड़े बड़े अफ़सरों ने उन्हें अपने साथ रक्खा और अपने ही दृष्टिकोण से समस्त बातों को उन्हें दिखलाया। परिणाम क्या हुआ? अँगरेज़ों––अपने देशवासियों––के पक्ष में पहले ही से उत्तम विचार


  1. पृष्ठ ११८
  2. सन्डरलेंड की उसी पुस्तक से।