पृष्ठ:दुखी भारत.pdf/४४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४२१
सुधारों की कथा

मौके पर पहुँची और १९१४ के पतझड़ की ऋतु में इन्होंने इपरिज़ और चैनल पोर्ट स की ओर जर्मनों के हमले रोकने में बड़ी सहायता दी। समय ब्रिटिश साम्राज्य के किसी भाग में केवल यही फौजें प्राप्त हो सकती थीं और इन्होंने अपने कर्तव्य का बड़ी खूबी के साथ पालन किया!

"मिस्र और पैलेस्टाइन में मेसोपोटामिया फ़ारस, पूर्वी और पश्चिमी अफ्रीका में और सहायता के अन्य मैदानों में उन्होंने अपने अँगरेज़ और उपनिवेशों के सिपाही दोस्तों के साथ अन्तिम विजय में भाग लिया"[१]

अप्रेल १९१६ ईसवी में लोअर मेसोपोटामिया पर विपत्ति टूट पड़ी और इसका सारा उत्तरदायित्व भारत-सरकार पर लादा गया। जाँच के लिए जो कमीशन नियुक्त किया गया था उसने सावधानी और शीघ्रता के साथ जाँच करके यह घोषणा कर दी कि मेसोपोटामिया का झगड़ा भारत सरकार की अयोग्यता के कारण हुआ है। हाउस आफ़ कामन्स में जब इस रिपोर्ट पर वाद-विवाद छिड़ा तद मिस्टर मांटेंग्यू ने, जो उस समय युद्ध-सामग्री-विभाग के मन्त्री थे, एक बड़ा तीक्ष्ण भाषण दिया। उसके बीच में उन्होंने कहाः––

"भारत की शासन-व्यवस्था इतनी जड़-बुद्धि, इतनी कठोर, इतनी हठी और इतनी असामयिक है कि वह आधुनिक बातों के लिए, जिन्हें हम सोच रहे हैं, सर्वथा अनुपयुक्त है। मैं नहीं समझता कि आधुनिक आवश्यकताओं की दृष्टिकोण से कोई कभी भारत सरकार का समर्थन कर सकता परन्तु यह करेगी। भारतीय सिपाही-विद्रोह के पश्चात् से कोई गम्भीर बात नहीं उपस्थित हुई थी इससे जनता भारतीय मामलों में दिलचस्पी नहीं ले रही थी। इसके लिए एक ऐसे जोखिम के समय की आवश्यकता थी जो सर्वसाधारण का ध्यान इस ओर आकर्षित करता कि भारत-सरकार एक ऐसी शासन-पद्धति है जिसका समर्थन नहीं किया जा सकता।"

आगे चल कर उन्होंने कहाः––

"मैं इस सभा से कहता हूँ कि भारतीय कार्यालय का शाही सङ्गउन एक ऐसा 'लाल फीते' का दफ्तर है और इस प्रकार उन्हीं बातों को


  1. पृष्ठ १२१