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'दुःखदायक, जटिल और अनिश्चित पद्धति'

आगरा और अवध के गवर्नर सर विलियम मेरिस ने, जिनका सुधार-मन्त्री की हैसियत से आरम्भ से ही इन सुधारों के साथ सम्बन्ध था, दोहरी शासन-व्यवस्था को 'दुःखदायक, जटिल और अनिश्चित पद्धति कहा था।'

प्रसिद्ध भारतीयों ने भी, जिनका इस दोहरे चन्द्र से काम पड़ा है, इसके सम्बन्ध में स्पष्टरूप से अपने विचार प्रकट किये हैं। एक वर्ष हुए बिहार-उड़ीसा के बड़े मन्त्री सर मुहम्मद फ़ख़रुद्दीन ने पटना की कौंसिल में कहा था:-

"दत्त विभागों का श्रेणी-क्रम अत्यन्त दोषपूर्ण है। इसका कोई कारण नहीं है कि आप मन्त्री को कृषि-विभाग दें और सिंचाई-विभाग उससे पृथक रक्खें! उसे आप कोष पर बिना कोई अधिकार दिये व्यय करनेवाले विभाग क्यों सौंपते हैं? बिना हाथ में रुपये के, दूसरे हमें मसौदा आदि तैयार करने के लिए कोरा क्लर्क समझते हैं। मसौदे के तैयार हो जाने पर अर्थ-विभाग को अधिकार है कि वह धन का अभाव देखे तो उसे रद कर दे।"

कहा जाता है कि मदास-प्रान्त में सुधारों पर बड़े उत्साह के साथ काम हुआ था। परन्तु वहां के मन्त्री सर के॰ वी॰ रिद्दी ने ११२३ ईसबी में कहा था:-

“मैं 'डेवलपमेंट विभाग का मन्त्री हूँ पर वन-विभाग का नहीं। और आप सब जानते हैं कि 'डेवलपमेंट' बहुत कुछ वन पर ही निर्भर है। मैं उद्योग-धन्धों का मन्त्री हूँ पर कल-कारख़ाने का नहीं जो कि अदत्त विभाग है। और बिना कल-कारख़ानों के उद्योग-धन्धे कल्पनातीत हैं। मैं कृषि-विभाग का मन्त्री हूँ पर सिंचाई-विभाग का नहीं। आप समझ सकते हैं कि इसका क्या अर्थ है। बिना सिंचाई के कृषि का कार्य्य कैसे किया जा सकता है? जिन लोगों पर ऐसे उत्तर-दायित्व हैं उनकी कठिनाई का अनुमान करना मुश्किल है। और भी, मैं उद्योग-धन्धों के विभाग का मन्त्री हूँ पर बिजली का नहीं हूँ क्योंकि वह भी अदत्त-विभाग है। श्रम और वाष्प-एंजिन के विभाग भी अदत्त-विभाग हैं।"

मन्त्री ने अपने भाषण के अन्त में यह ठीक ही कहा था-परन्तु सुधार-योजना के दोषों के ये केवल थोड़े से नमूने हैं।'