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'दुःखदायक, जटिल और अनिश्चित पद्धति'

सङ्कट इस बात में है कि विधान को एक रूप तो दे दिया गया है परन्तु उसके भीतर तत्त्व कुछ नहीं है।"

मिस्टर ई॰ विलियर्स ने, जो बङ्गाल के योरपियनों के प्रतिनिधि बन कर व्यवस्थापिका सभा में दो बार जा चुके थे, गत वर्ष के चुनाव में अपने खड़े न होने का कारण बतलाते हुए एक घोषणा-पत्र निकाला था। उसमें उन्होंने लिखा था:-

"मैं समझता हूँ कि उनका (सुधारों का) व्यावहारिक रूप ठीक नहीं है। इसलिए, यदि हम भारत को कम से कम व्यय में अधिक से अधिक योग्यता के साथ शासन करने की नीति सिखाने जा रहे हैं, यदि हम उसे 'राजनैतिक उत्तरदायित्व' के भाव की शिक्षा देने जा रहे हैं, तो मैं कहूँगा कि हमारा यह ढङ्ग ठीक नहीं है। हम उसे उत्तरदायित्व की शिक्षा देने के बजाय अनुत्तरदायित्व की शिक्षा देने जा रहे हैं।..........ऐसी परिस्थिति में, इस प्रश्न को खूब अच्छी तरह अनुभव करते हुए मैं नहीं समझता कि मैं आपके हितों की या आपके प्रान्त के हितों की कोई विशेष सेवा कर सकता हूँ।"

प्रमुख अँगरेज़ राजनीतिज्ञ इस दोहरी शासन-व्यवस्था की कार्य्य-योग्यता के सम्बन्ध में अपने निर्धारित दोष प्रकट कर चुके हैं। हाउस आफ़ लार्डस में जब सुधारों पर बहस हुई थी तब लार्ड कर्ज़न ने हाउस के निर्णय को स्वीकार कर लिया था परन्तु यह कहने से वे नहीं चूके थे कि व्यक्तिगत रूप से मैं इस पद्धति से घृणा करता हूँ। बङ्गाल के भूतपूर्व गवर्नर लार्ड रोनाल्डशे ने इस पद्धति के सम्बन्ध में लिखा था कि यह एक 'जटिल विधान-यन्त्र' है। लार्ड वर्कनहेड ने कहा था कि 'मेरा दोहरी शासन-व्यवस्था के सिद्धान्त पर ही विश्वास नहीं है।' उन्होंने इसे 'दम्भ के चमड़े से ख़ूब मढ़ी हुई' बताया था।

जब भारतीय भी, जिन्हें इस पद्धति पर कार्य्य करने के लिए कहा जाता है, इसके सम्बन्ध में इन्हीं विचारों को प्रकट करते हैं तब उन्हें दोष क्यों देते हो?