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दुखी भारत

उन व्यक्तियों के विरुद्ध भी जिनके देशवासियों ने अपनी राजनैतिक महत्त्वाकांक्षाओं द्वारा लेखिका का स्पष्ट रूप से अपमान किया हो, इसी प्रकार के आन्दोलन ने मुझे चकित कर दिया है। यदि अमरीका के निवासियों ने कभी इँगलैंड के प्रति राजनैतिक द्वेष प्रकट किया हो तो यह समझ में आ सकता है कि इसी श्रेणी का एक अँगरेज़ लेखक अमरीका के समाचार-पत्रों की सहायता से बड़े चाव से यह सिद्ध करने का प्रयत्न करेगा कि अमरीकावासियों की वृत्ति पापमयी है और अपने कथन के समर्थन में वह उनकी उन अश्लील दुर्भावनाओं को उद्धृत करेगा जिन्हें वे आनन्द के साथ सिनेमा के गन्दे चित्रों को देखकर प्रकट करते हैं। परन्तु क्या वह कभी अपने पागलपने में भूतपूर्व प्रेसीडेंट विलसन के विरुद्ध यह भयानक अपराध लगाने का साहस करेगा कि विलसन ने अपना पवित्र मत यह दिया था कि उच्च कोटि की सभ्यता में ईसाई-धर्म के सद्गुणों का विकास करने के लिए हबशियों का अन्यायपूर्वक वध करना आवश्यक है? अथवा क्या वह प्रोफेसर डेवी के नाम के साथ यह सिद्धान्त जोड़ने का साहस करेगा कि शताब्दियों तक जादूगरनियों को जलाते रहने के कारण पश्चिमीय जातियों में वह तीव्र और प्रबुद्ध नैतिक भावना विकसित होगई है जिससे वे उन लोगों के सम्बन्ध में अपनी सम्मति बनाते हैं और उनकी निन्दा करते हैं जिन्हें वे भली भांति नहीं जानते या जिनकी बातें वे नहीं समझते या जिनको वे नहीं पसन्द करते और जिनके अपराधी होने में उन्हें कोई सन्देह नहीं होता। परन्तु क्या मेरे सम्बन्ध में इस लेखिका और इसके समर्थक सम्पादक की दृष्टि में इस प्रकार जान बूझकर असत्य और उत्तरदायित्व से शून्य बातें लिखना केवल इसलिए सरल हो गया कि मैं ब्रिटिश प्रजा की अपेक्षा और कुछ नहीं हूँ तथा जन्म के संयोग से हिन्दू हो गया हूँ और उन मुसलमानों से मेरा सम्बन्ध नहीं है जो लेखिका के अनुसार उसकी जाति के लोगों के और हमारी सरकार के विशेष कृपापात्र हैं। क्या मैं इस सम्बन्ध में कह सकता हूँ कि चुने हुए काग़ज़ों का आधार लेकर सम्पूर्ण जनसंख्या पर आधात पहुँचानेवाला जो अनुचित परिणाम निकाला गया है, वह समुद्रपार के इस महिला यात्री के हाथों में अत्यन्त भयानक असत्य का एक ऐसा विषमिश्रित बाण हो सकता है जिसका स्वयं ब्रिटिश जाति बड़ी सरलता-पूर्वक विस्तृत लक्ष्य बन सकती है? लेखिका का यह कहना कि हिन्दू लोग गाय का गोबर खाते हैं, एक जाति के विरुद्ध उसका मिथ्या कपट-मात्र है। यह कथन उतना ही द्वेषपूर्ण है जितना उन लोगों से, जो अँगरेज़ों को कम जानते हैं, उनका इस प्रकार परिचय देना कि अँगरेज़ लोग कोकीन खाने के आदी हैं क्योंकि उनकी दन्तचिकित्सा में कोकीन का प्रायः प्रयोग होता है। हिन्दू भारत में कदाचित् किसी विशेष परिस्थिति में किसी सामाजिक मर्यादा का उल्लंघन करने पर प्रायश्चित्त करने के लिए अत्यन्त अल्प