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'मदर इंडिया' पर कुछ सम्मतियाँ

मात्रा में गोबर खाना पड़ता है परन्तु वह उनके भोजन का कोई अङ्ग नहीं होता। यदि योरपियनों के विरुद्ध बुरे भावों के फैलाने में किसी को कोई विशेष स्वार्थ न सिद्ध करना हो या कोई विशेष आनन्द न आता हो तो वह घोंघा, सीप और पनीर का उदाहरण होते हुए भी यह कहने में संकोच करेगा कि योरपियन लोग जिन्दा जानवर और सड़ी गली चीज़ें खाते हैं, यद्यपि अन्य बातों की अपेक्षा इसके कहने में प्रकट-रूप से अधिक अन्याय न होगा। अपवाद को सर्वसान्य नियम का रूप देना और जिन बातों का कोई महत्व नहीं है उन्हें बहुत बढ़ा चढ़ा कर उपस्थित करना धूर्तता का अत्यन्त कपटपूर्ण ढङ्ग है।

अपरिचित वायुमण्डल में नैतिक पतन के जो उदाहरण मिलते हैं वे स्वभावतः बहुत भयङ्कररूप में दिखाई पड़ते हैं क्योंकि आन्तरिक पवित्रता रखनेवाली शक्ति और पाप के विरुद्ध कार्य करनेवाली सामाजिक शक्ति नवागन्तुक को दिखाई नहीं पड़ती और विशेष कर ऐसे व्यक्ति को जो उद्दाम और घृणित बासना खोज करने में व्यग्र हो। जब कोई ऐसा समालोचक पूर्वीय देशों में आता है––सत्य की खोज में नहीं बल्कि दूसरों की दिल्लगी उड़ाकर आनन्द लूटने के लिए––और कुछ सामाजिक भूलों पर प्रसन्न होकर अपनी लाल पेंसल से गहरा चिह्न अङ्कित करता है तथा उन्हें उनके प्रासङ्गिक प्रकरण से पृथक करके दिखलाता है तब वह हमारे नवयुवक समालोचकों को भी वही अपवित्र खेल खेलने के लिए छेड़ता है। बस, ये भी ऐसी ही अनेक पथ-प्रदर्शक पुस्तकों की सहायता से, जो मनुष्य की भलाई के लिए किसी प्रामाणिक संस्था से प्रकाशित की जाती हैं, पाश्चात्य समाज की अन्धकारमय गुफाओं, घृणोत्पादक चरित्रों के जन्मस्थानों और नैतिक गन्दगी को, जिनमें कुछ बाहरी सम्मान का भयानक आवरण धारण किये रहते हैं, खोज निकालते हैं। ये भी अपने विदेशी आदर्शों की भाँति उसी पवित्र उत्साह के साथ अपनी पसन्द के गन्दगी के नमूने चुनते हैं और सम्पूर्ण राष्ट्र के नाम पर उसी प्रकार कालिमा पोत देते हैं। इस प्रकार जिन खाइयों से कीचड़ उछाला जाता है, उनके अस्तित्व में तो सन्देह नहीं रहता पर उनमें पूर्ण सत्य नहीं होता।

इस प्रकार पारस्परिक तू-तू मैं-मैं के अनन्त पाप-वृत्त की सृष्टि होती है और भ्रम का भाण्डार भरता जाता है। इन बातों से विश्व की शान्ति भयग्रस्त हो उठती है। इसमें सन्देह नहीं कि हमारे पूर्व के नवयुवक समालोचक घाटे में रहते हैं। क्योंकि पाश्चात्य लोगों के पास आवाज़ को अत्यन्त बृहत् रूप देनेवाला यंत्र होता है जो बहुत गहराई तक जाता है और बहुत दूर तक असर करता है; चाहे वे दूसरों की निन्दा करें चाहे दूसरों