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दुखी भारत


अतिशयोक्तियाँ मिलेंगी परन्तु वे पूर्ण रूप से सत्य ही सिद्ध होंगे। यह मैं केवल उन प्रारूपों के सम्बन्ध में लिख रहा हूँ जो उसने किये हैं। यहाँ उसने इन आक्षेपों के आधार पर जो परिणाम निकाले हैं उनसे मेरा तात्पर्य्य नहीं है। वे असत्य हो सकते हैं।

(२) इतना स्वीकार करते हुए भी, इस पुस्तक के सम्बन्ध में बहुत उदारता के साथ कहना पड़े तो भी मैं यही कहूँगा कि यह मुझे बहुत अनुचित प्रतीत हुई है। पुस्तक को पढ़ने के पश्चात् जो चित्र सामने उपस्थित होता है वह न सत्य है न न्याययुक्त। जिन पाश्चात्य पाठकों को वास्तविक बातें नहीं ज्ञात हैं, उनके हृदय में इस पुस्तक के पढ़ने पर जो विचार उठते हैं वे एक पाश्चात्य समालोचक के आगे लिखे शब्दों से भली भाँति जाने जा सकते हैं-'भारतवर्ष पतित देश है, सोडोया गोमोर्रा से भी गया बीता है; इत्यादि।' यह सम्पूर्ण भारतीय जाति पर कलङ्क है। यदि पश्चिम की बुराइयों को पुलिस की अदालतों के विवरणों के साथ संसार के सम्मुख उपस्थित किया जाय और कहा जाय कि यही पाश्चात्य जीवन का सच्चा चित्र है तो कोई भी पश्चिमी व्यक्ति बिना क्रोध और घृणा प्रकट किये न रहेगा। यही इस पुस्तक में अनौचित्य है। एक दूसरा भारत भी है। वह इस पुस्तक में नहीं दिखाया गया। यदि वह भी दिखाया जाता तो हम इसकी शिकायत नहीं कर सकते थे। परन्तु जिस भारत को मैं जानता हूँ वह इस पुस्तक में नहीं है। उस भारत के प्रति मेरे हृदय में स्नेह है, श्रद्धा है और सम्मान है।

इपोह (मलाया स्टेट्स) ई॰ स्टेनली जोन्स
५ अक्टूबर १९२७
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अँगरेज़ी के विख्यात नाटक और उपन्यास-लेखक श्रीयुत एडवर्ड टामसन जो भारतवर्ष में शिक्षा-विभाग में बहुत समय तक कार्य कर चुके हैं और इस समय आक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में बङ्गाली-साहित्य के प्रोफेसर हैं। लन्दन के 'नेशन और अदेनीम' नामक समाचार-पत्र के ३० जुलाई १९२७ के अङ्क में लिखते हैं—

दोषारोपण इतना सार्वभौमिक है और प्रत्येक अवस्था में इतना अनुदार है कि सम्पूर्ण पुस्तक एक 'दीर्घ पीड़ा' के समान प्रतीत होती है। यदि आप भारतीयों को यह विश्वास दिला सकें कि आप कभी कभी उनके दृष्टिकोण से भी विचार करते हैं, उनके साथ सहानुभूति रखते हैं और उनके देश तथा