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'मदर इंडिया' पर कुछ सम्मतियाँ

संभवतः ऐसी दुवृत्ति के वशीभूत हैं जो मनुष्य को आगे नहीं बढ़ने देती और जो बुराई, गन्दगी और अधःपतन के अतिरिक्त और कुछ नहीं देखती।

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श्रीमती जे॰ सी॰ वेजउड ने, 'पीपुल' (लाहौर) की ५ जनवरी ११२८ की संख्या में एक लेख लिखते हुए एक स्थान पर लिखा था––

अमरीकन महिला कैथरिन मेयो ने अपनी पुस्तक मदर इंडिया में भारतवासियों की जिस ढङ्ग से निन्दा की है उससे बहुत-सी अँगरेज़ महिलाएँ अत्यन्त उद्विग्न हो उठी हैं। हम आपको यह बतलाना चाहती हैं कि भारतीय जीवन और विचार का उसने जो गन्दा और झूठा चित्र उपस्थित किया है, उससे हमें अत्यन्त दुःख पहुँचा है। जिन बुराइयों का उसने वर्णन किया है यदि वे सब सच भी हों तो भी अच्छाइयों को छोड़ देने से वह अपने पाठकों के सामने गलत बातें उपस्थित करती है और उनके हृदयों में भारतवासियों––हिन्दू-मुसलमान––दोनों के प्रति घृणा उत्पन्न करती है और उनकी दृष्टि में उन्हें निर्बल, मूर्ख और धर्मान्ध ठहराती है। स्त्री-पुरुष दोनों को उसने अन्धविश्वासी, विषयी और दासता के भाव से जकड़ा हुआ बताया है। और यह भी कहा है कि उनके हृदयों में उन्नति की इच्छा ही नही है............

उदाहरण के लिए, उसकी पुस्तक का कोई भी पाठक इस परिणाम पर पहुँच सकता है कि भारतवर्ष में कोई वैवाहिक सम्बन्ध सुखमय नहीं होता। अत्याचारी और निर्दयी बुड्डा पति होता है जो अपनी भयभीता बाल-पत्नी को सताता है। मिस मेयो उस सुन्दर सम्बन्ध की उपेक्षा करती है जो भारतीय पति और पत्नी में प्रायः पाया जाता है। पति प्रेम के साथ पत्नी की रक्षा करता है और पत्नी उसके प्रति श्रद्धा और भक्ति प्रदर्शित करती है। निःसन्देह भारतीय दम्पती का स्नेह अमर, अतृप्त और औपन्यासिक है; और संसार की सब जातियाँ इसे स्वीकार करती हैं। अब अनेक सुन्दर कथाओं और गीतों का प्राण है। मिस मेयों ने इसे कदाचित् जानबूझ कर भुला दिया है क्योंकि इसकी तुलना में अमरीकन विवाहों के विश्वासघात और सम्बन्धविच्छेद के उदाहरण अत्यन्त निकृष्ट प्रतीत होते। इन 'आधुनिक' महिलाओं को अपने पति की सेवा करने का भाव हास्यास्पद प्रतीत होगा। ये तो उलटा पति को अपना गुलाम बनाती हैं और जब उससे पूरा लाभ उठा चुकती हैं तब उसे छोड़ देती हैं और नया शिकार करती हैं।.........