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'मदर इंडिया' पर कुछ सम्मतियाँ

इसमें सन्देह नहीं कि भारत की स्वतंत्रता के विरोधीगण इस पुस्तक को ईश्वर की भेजी हुई वस्तु समझते हैं। वे लोग भारतवर्ष पर हमारा आधिपत्य बनाये रहना चाहते हैं। पिछले बहानों को उन्होंने त्याग दिया है और अब स्पष्ट रूप से हमसे कह रहे हैं कि 'मुख्य बात यह है कि सामाजिक दृष्टिकोण से भारतवर्ष स्वराज्य के लायक नहीं है।' जब तक भारतवर्ष अपनी दशा न सुधारे तब तक इँगलैंड को चाहिए कि उसे कोई राजनैतिक अधिकार न दे। इस पुस्तक की समालोचना करते अपरिवर्तनवादी दल का एक समाचार पत्र कहता है कि 'राजनैतिक अधिकार देने के बहाने हमें भारतवर्ष को कुमार्ग पर न खड़ा कर देना चाहिए'।

सर जान मेनर्ड के॰ सी॰ एस॰ आई॰, जो पहले भारतीय सिविल सर्विस में थे, जिनके जीवन का अधिकांश भाग भारतवर्ष में व्यतीत हुआ था और जो पञ्जाब के गवर्नर की कार्यकारिणी समिति से पेंशन लेकर पृथक होने से पूर्व प्रत्येक विभाग में कार्य कर चुके थे, लिखते हैं कि इस पुस्तक के सम्बन्ध में संयम के साथ विचार करना मेरे लिए कठिन है। इससे सहमत हूँ। मैंने भारतवर्ष की उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्चिम तक गत १६ वर्षों में ६ बार से कम यात्रा नहीं की। और भारतीय गृहस्थों के साथ रह चुका हूँ; ब्रिटिश इंडिया में भी और देशी रियासतों में भी। यदि मैं पक्षपातरहित होकर भारतवर्ष के सम्बन्ध में एक पुस्तक लिखूँ तो वह मिस मेयो की पुस्तक से उतनी ही भिन्न हो सकती है जितनी कि कोई कल्पना कर सकता है। मैं जिन मकानों में ठहरा हूँ केवल उन्हीं तक अपने विचारों को परिमित रक्खूँ सब भी यह भारतवर्ष को उससे सच्चा चित्र होगा जो मिस मेयो अपने निरीक्षण से तैयार कर सकी है।

वह भारतीय समाज में केवल वहीं आनन्द आती है जहाँ वह अस्वस्थ होता है। उसने प्रथम अध्याय में एक घृणित धार्मिक कृत्य का चित्रण करके अपना वायुमण्डल तैयार किया है; यद्यपि यह धार्मिक कृत्य वास्तविक भारतीय जीवन का अङ्ग नहीं है और केवल अत्यन्त निम्नकोटि के मूर्ख लोगों में ही प्रचलित है। जिस प्रकार उसने धर्म का वर्णन किया है वैसे ही सामाजिक रवाजों का भी। भारतीय विवाह के सम्बन्ध में कुछ बातें बताने के लिए उसने अस्पतालों और अधिकारी डाक्टरों का सहारा लिया परन्तु इन स्थानों में जो बातें देखी जाती हैं वे सामान्य नियम की अपवाद-मात्र होती हैं।

मिस मेयो की पुस्तक पढ़ कर आप यह सोच सकते हैं कि भारतवर्ष में कदाचित् एक व्यक्ति भी ऐसा नहीं मिलेगा जो इन्द्रिय रोगों से पीड़ित न हो। परन्तु सरजन मेनर्ड लिखते हैं कि कोई भी डाक्टर जो भारतवर्ष