पृष्ठ:दुखी भारत.pdf/४९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४७५
'मदर इंडिया' पर कुछ सम्मतियाँ

व्यर्थ के अडङ्गों में अपनी सारी शक्ति लगाते रहते हैं और अधिकांश समय तक अन्य सदस्यों को चुपचाप बैठे रहना पड़ता है तब हमें आश्चर्य होता है कि क्या मिस मेयो इस बात को नहीं जानती कि हाउस आफ़ कामन्स में राज्यकोष की बैंचों पर जो बैठते हैं वे अडङ्गा नीति के प्राचीन आचार्य हैं। और यदि वह उदासीनता के भारी भार का अनुभव करना चाहे तो हाउस आफ़ कामन्स में भारतीय प्रश्नों पर विवाद की बैठकें देखे। उस समय यदि उसके भाग्य अच्छे हुए तो ४१५ अपरिवर्तनवादी सदस्यों में उसे अधिक से अधिक २० दिखाई पड़ जायेंगे और वे भी या तो जँभाई लेते होंगे या अर्द्धनिन्द्रित होंगे।

मिस मेयो का विश्वास है कि ब्रिटेन ने भारतवर्ष को राजनैतिक सुधार देने में जल्दी की है; पर भारतीय स्वयं इस जल्दी को बुरा मानते हैं। वह दोहरी शासन-व्यवस्था की असफलता उसकी आन्तरिक त्रुटियों के कारण नहीं स्वीकार करती बल्कि उसे महात्मा गांधी के बुरे राजनैतिक आन्दोलन के कारण बताती है; यद्यपि इन त्रुटियों को लार्ड कर्जन से लेकर संयुक्त-प्रान्त के गवर्नर तक, जिसने इसे 'दुःखदायक जटिल और अनिश्चित पद्धति' कहा था, सब स्वीकार करते हैं। मिस मेयो ने जेनरल डायर और अमृतसर का कहीं उल्लेख नहीं किया। परन्तु यदि मिस मेयो किसी भारतीय से इस सम्बन्ध में पूछती तो उसे मालूम होता कि सुधारों के विरोध होने का सबसे बड़ा कारण १९१९ ईसवी में अमृतसर का भयानक हत्याकाण्ड है।

लेखिका भारतीयों की इस शिकायत को नहीं सुनती कि उनके देश की आय का एक बड़ा भाग बाहर चला जाता है। उसकी समझ में सेना के अफसर वतन के अतिरिक्त अपनी निजी आय भी वहीं व्यय कर देते हैं। परन्तु दूसरे ही पृष्ठ पर वह स्वयं अपना खण्डन करती है और लिखती है कि सेना के अफसर और सिविल सर्विस के अफसर अपने बच्चों को इँगलैंड पढ़ने के लिए भेजते हैं––जहाँ उनके वेतन का एक विचारणीय भाग आवश्यकता में व्यय होता है। परन्तु गत वर्ष के २१ मार्च को ही लार्ड विंटरटन ने हाउस आफ़ कामन्स में कुछ अङ्क उपस्थित किये थे उनसे पता चलता है कि ४,००० से ५,००० तक फौजी अफसर ऐसे हैं जो भारतीय कर की आयु से २०,००,००० पौंड प्रतिवर्ष पेंशन पाते हैं और उसे इसी देश में (इँगलैंड में) व्यय करते हैं। अन्य विभागों से पेंशन पानेवाले अँगरेज़ों की संख्या ३,००० है। वे १५,००,००० पौंड प्रतिवर्ष भारत से पेंशन पाते हैं, इँगलैंड में रहते हैं और वहीं व्यय करते हैं। निःसन्देह भारत के धन का यह भीषण बहिगमन है; और ज्वाइंट स्टाक बैंकों, व्यापारिक गृहों और कारखाना आदि के लाभ के द्वारा भारत का जो धन इँगलैंड पहुँचता है, उसका तो कुछ कहना ही नहीं है।